श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
संस्कृत-साहित्य
हितमतार्थ चन्द्रिकाः- सुन्दर मंगलाचारण[1] से आरंभ होने वाले इस ग्रन्थ में अन्य मंत्रों से वैष्णव मंत्रों की श्रेष्ठता, वैष्णव गुरु के लक्षण, वैष्णवों के पंच संस्कार[2] और उन संस्कारों का राधावल्लभीय संप्रदाय में गृहीत रूप, श्री राधा-कृष्ण का परात्परत्व, श्री राधा के स्वरूप का मार्मिक विवेचन, श्री राधा का स्वकीयात्व प्रतिपादन और अन्त में श्री हिताचार्य का सब आचार्यों में श्रेष्ठत्व स्थापित किया गया है। ग्रन्थ की रचना सं. 1605 में हुई है। अध्वविनिर्णय की टीकाः- इक्यावन श्लोक के छोटे से ग्रन्थ की शास्त्री जी ने यह बहुत विस्तुत टीका लिखी है। इसमें संप्रदाय के उपास्य तत्त्व और उपासना का बड़ा विशद और शास्त्रीय विवेचन किया गया है। इस टीका की रचना सं. 1621 में हुई है। लेखक की देखी हुई शास्त्री जी को अन्य रचनाओं के नाम हैं, टीका यमुनाष्टक, टीक फुटकर वाणी, सेवा दर्पणम्, त्रिलक्षण भक्ति मीमांसा, मतबोध, तिथि निर्णय, प्रियाचरण चिह्न तात्पर्यम्, उत्सव निर्णय सारम् और भागवत प्रथम श्लोक व्याख्या।[3] राधामोहन दासः-इनके दो ग्रन्थ 'श्री राधावल्लभ भाष्यम्' और श्रीमद्भागवतार्थ दिग्दर्शनम् लेखक ने देखे हैं।[4] द्वितीय ग्रन्थ की पुष्पिका में इन्होंने स्वयं को राजा जयसिंह देव का पुत्र लिखा है और अपना अप रनाम बलभद्र बतलाया है।[5] भाष्य की भूमिका में इन्होंने अपने गुरु का नाम गोस्वामी चन्द्रलाल जी, रूपलाल जी और मोतीलाल जी लिखा है और प्रियदास जी (रीवां वालों) को भक्ति प्रबोधक बतलाया है।[6] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ योस्त्यालंबन रूपोपि रसिको रस रूपकः। हृदयोद्दीपनोमेऽस्तु श्री राधा वल्लभो वर।।
- ↑ मला मुद्रा तथा नाम मंत्रं पुण्ड तथैव च। अमौह पंच संस्कारा मयात्र परिकीर्तिताः।।
- ↑ श्री राधावल्लभीय साहित्य रत्नावली में प्रियदास जी की 37 रचनाओं की सूची दी हुई है।
- ↑ यह दोनों ग्रन्थ अहमदाबाद में श्री राधा प्रताप गोस्वामी के संग्रहालय में है।
- ↑ श्री महाराजाधिराज श्री महाराजा श्री राजा जयसिंहदेव सुत अनन्त श्री राधावल्लभस्य कृपा पात्रास्यधिकारी श्री राधामोहन दास अपर नाम श्री बलभद्रः।
- ↑ चन्द्रलालं रूपलालं मोतीलालं गुरुं तथा। प्रियदासं तथा आचार्य वंदे भक्ति प्रबोधकम्।।
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