हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 507

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
संस्कृत-साहित्य

भूमिका का आरम्भ श्री राधा की वन्दना से होता है और द्वितीय श्लोक में हित स्वरूप श्री हित हरिवंश की वंदना है, जिनको भाष्यकार ने, वंशी स्वरूप और 'गोपी संप्रदाय' का प्रकाशक लिखा है।

यह भाष्य ब्रह्मसूत्र के चारों अध्यायों पर है और इसमें यह सिद्धान्त स्थापित किया गया है कि गोपी संप्रदाय के अनुसरण से ही राधाकृष्णात्मक ब्रह्मा का साक्षात्कार होता है।[1] इसमें जीव और जगत् के संबंध में सामान्य वैष्णव पक्ष ही ग्रहण किया गया है। यह भाष्य सं. 1864 माघ कृष्णा[2] गुरुवार को पूर्ण हुआ है।

“श्रीमद्भागवत दिग्दर्शनम्” में प्रथम स्कंध से द्वादश स्कंध तक की कथाओं का संक्षिप्त वर्णन संस्कृत गद्य में किया गया है। इसमें रचना काल नहीं दिया गया है।

श्री प्रियालाल गोस्वामी- यह प्रयाग-प्रवासी विद्वद्वर श्री प्रियतमलाल गोस्वामी के पुत्र थे। इनका एक ही ग्रन्थ 'राधाराद्धान्त तरंगिणी' लेखक ने देखा है। इसमें चौदह तरंग है। प्रथम तरंग में गुरु-स्वरूप का कथन, द्वितीय तरंग में दीक्षा-वर्णन, तृतीय तरंग में उर्द्धव पुण्ड और मुद्राओं का माहात्म्य-कथन, चतुर्थ तरंग में तुलसी माला और वैष्णव-संस्कारों का वर्णन, पंचम में प्रसाद-महिमा, षष्ठ में वैष्णव-माहात्म्य, सप्तम में श्री वृन्दावन-महिमा, अष्टम में राधाकृष्ण का ऐक्य-निरूपण, नवम में स्व संप्रदाय कथन, दशम में श्री हिताचार्य का वर्णन, एकादश मे श्री हितप्रभु के वंश का वर्णन और श्री किशोरीवल्लभ का प्रादुर्भाव वर्णन, द्वादश मे अपने पूर्वजों का वर्णन, त्रयोदश में वार्षिक उत्सवों का वर्णन और चतुर्दश में आह्निक पूजनादिक का वर्णन किया गया है। इस ग्रन्थ की रचना सं. 1916 में हुई है।[3]

श्री वंशीलाल गोस्वामी-यह श्री बनचन्द्र गोस्वामी के तृतीय पुत्र श्री नागरवर गोस्वामी की पुत्री के यशस्वी वंश में उत्पन्न हुए थे। इनका केवल एक ही ग्रन्थ 'राधेय सिद्धान्त' लेखक ने देखा है। यह अत्यन्त प्रौढ़ संस्कृत गद्य में लिखा हुआ है और इसमें श्री राधा का परात्परत्व स्थापित किया गया है। इसकी रचना सं. 1909 में हुई है।[4]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गोपी संप्रदानुसरणे नैव राधाकृष्णात्मक ब्रह्मा साक्षात्कार इति सिद्धान्तितम्।
  2. हितादि हरिवंश च वन्दे तद्हितकारणम्।वंशी स्वरूपपिणं गोपी संप्रदाय प्रकाशनम्।।
  3. स्कन्दास्येन्दु नवेन्दु वत्सर वरे माधेसिते पंचमी।
  4. यह ग्रन्थ अहमदाबाद में श्री राधाप्रताप गोस्वामी के संग्रहालय में है। 

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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