श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
संस्कृत-साहित्य
श्री राधा के रूप गुण वर्णन के साथ, हित प्रभु ने, इस ग्रन्थ में युगल उपासना की राधापद्धति का निर्माण किया है। चाचा हित वृन्दावन दास ने हित प्रभु को अनेक स्थलों पर ‘राधा पद्धति प्रचुर कर्ता’ लिखा है। हित प्रभु की उपासना में श्री राधा की प्रधानता देखकर अनेक लोग उनको राधिका उपासक मान लेते हैं किन्तु यह बहुत मोटी भूल है। वे सच्चे युगल उपासक हैं। युगल उपासना की दो पद्धतियां प्रचलित हैं, एक ‘कृष्ण पद्धति’ जो गौड़ीय संप्रदाय में दिखाई देती है और दूसरी राधा पद्धति’ जो श्री हित हरिवंश गोस्वामी द्वारा प्रचलित की गई हैं। विधि-निषेधादिक शास्त्र-मर्यादाओं का परित्याग इस पद्धति का एक विशेष अंग है। यह त्याग इतना संपूर्ण है कि वैष्णव-शास्त्रों के विधि निषेधानिदक भी इसके क्षेत्र से बाहर नहीं समझे गये है।[1] राधा सुधानिधि पर निम्नलिखित महानुभावों की टीकायें प्राप्त हैं। श्री संतराम जी (ब्रज भाषा), श्री लोकनाथ जी (व्रज भाषा), श्री तुलसीदास (व्रज भाषा), श्री हरिलाल व्यास (संस्कृत, लघुव्याख्या, मध्य व्याख्या, रसकुल्या) श्री हितदास जी (व्रज भाषा) श्री कृपालाल गोस्वामी (संस्कृत) श्री वृन्दावन दासजी (व्रजभाषा) श्री लाड़िली लाल गोस्वामी (व्रज भाषा) श्री मनोहर वल्लभ गोस्वामी (व्रजभाषा) श्री स्वामिनी शरण जी (ब्रजभाषा) श्री भोलानाथ जी (ब्रजभाषा गद्य और पद्य) श्री युगल वल्लभ गोस्वामी (व्रजभाषा) श्री वेजनाथ जी (व्रजभाषा) श्री हिताचार्य की दूसरी संस्कृत रचना यमुनाष्टक है। श्री वल्लभाचार्य ने भी एक यमुनाष्टक की रचना की है और उसमें यमुना को श्रीकृष्ण को पटरानी माना है। हित प्रभु ने यमुना को श्याम श्यामा के हृदय में प्रवाहित होने वाले उज्ज्वल रस का बाहर उच्छालित होने वाला रूप माना है।[2] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1 रा. नि. 77, 80, 81, 82
- ↑ ब्रजेन्द्र सूनु राधिका हृदि प्रपूर्य माणयो, महा रसाब्धि पूरियोरिवाति तीव्र वेगत:। बहि समुच्छलन्नव प्रवाह रूपिणी महं, भजे कलिन्द नंदिनी दुरंत मोह भंजिनीम् ।
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