हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 461

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
ब्रजभाषा-बद्य-साहित्‍य

(2) संप्रदाय निर्णय- इसमें राधा वल्लभीय संप्रदाय की गुरु परंपरा, धाम, इष्‍ट, उपासक, दशा, पुरी, द्वार, गोत्र, भूमि, रस, भाव आदि का निर्देश किया गया है। इसमें संप्रदाय की गुरु-परंपरा इस प्रकार दी हुई हैं- श्री नित्य बिहारी युगलात्मक के नूपुर-रव तें शब्द ब्रह्म की उत्पत्ति, शब्द ब्रह्म तैं श्री नारायण जी, तिनके नाभि कमल तैं श्री ब्रह्मा जी, तिन तैं श्री नारद जी, तिन तैं व्यास वेद जी, तिन तैं श्री शुकदेव जी, तिन तैं कश्‍यप ऋषि, तिन तै विजयभट्ट, कृलाजित भट्ट, विधाधर भट्ट, तिनतै जालप मिश्र, प्रभाकर मिश्र, उवाकर मिश्र, जीवद मिश्र, हिमकर मिश्र, तिन तैं श्री व्यास मिश्र, तिन तैं वंशी रूप श्री हित हरिवंश गोस्वामि।’ 8. उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में श्री हरिलाल व्यास ने सेवक वाणी की प्रथम टीका व्रज भाषा गद्य में लिखी। व्यास जी संस्कृत के धुरंधर विद्वानओर विलक्षण प्रतिभा संपन्न ध्‍यक्ति थे। राधासुधानिधि पर इनकी ‘रसकुल्या’ टीका विद्वज्जनों द्वारा अत्यन्त समादृत हैं। यह टीका सं. 1835 में पुर्ण हुई है। सेवक वाणी की टीका इसके पूर्व लिखी गई हैं। टीका के अंत में व्यास जी ने बतलाया है-

भयौ मनोरथ सुधानिधि टीका करना उपाइ ।
श्री वृन्दावन धाम में वास भयौ सुखदाइ ।।
आधी टीका बीच में भयो मनोरथ एह ।
सेवक वाणी अर्थ जुत कछु लिखिये निजु नेह ।।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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