हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 334

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
श्री दामोदर स्वामी

उन्होंने अपने पास केवल नामसेवा रखी और स्वरूप सेवा को अन्यत्र दे दिया। अपने व्यवहार के लिये उन्होंने दौना पत्तल और व्रज-रज के बने पात्र रखलिये। भगवत मुदित जी ने चरित्र के अन्त में लिखा है,

ऐसी स्वामी की बहु बातैं, ते प्रभु बस करिबे की घातैं ।
भगवत दामोदर कहन रहन तिही अनुसार ।
प्रण लात्यौ श्री व्यास-सुत दियौ दिखाइ विहार ।।

स्वामी जी ने शुकोक्ति ‘रास पंचाध्यायीं का अविकलभाषान्तर व्रजभाषा पद्य में किया है, और पंचायध्यायी की लीला को स्वतंत्र रूप से सुन्दर कवित्तों में भी कहा है। इन कवित्तों में उनकी प्रतिभा को प्रकाशित होने का अधिक अवसर मिला है। आरम्भ के दो कवित्त देखिये।

भोग ईस, जोग ईस, जज्ञ ईस, जग ईस,
विधि ईस, सक्र ईस, ईस सिव काम कौ।
रवि ईस, ससि ईस सारदा गनेस ईस,
परम कल्याण ईस, ईस तत्त्व ग्राम कौ ।
सकल सिंगार ईस, परम विहार ईस,
सुमृति पुरान ईस, ईस रिगु साम कौ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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