श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
श्री दामोदर स्वामी
उन्होंने अपने पास केवल नामसेवा रखी और स्वरूप सेवा को अन्यत्र दे दिया। अपने व्यवहार के लिये उन्होंने दौना पत्तल और व्रज-रज के बने पात्र रखलिये। भगवत मुदित जी ने चरित्र के अन्त में लिखा है, ऐसी स्वामी की बहु बातैं, ते प्रभु बस करिबे की घातैं । स्वामी जी ने शुकोक्ति ‘रास पंचाध्यायीं का अविकलभाषान्तर व्रजभाषा पद्य में किया है, और पंचायध्यायी की लीला को स्वतंत्र रूप से सुन्दर कवित्तों में भी कहा है। इन कवित्तों में उनकी प्रतिभा को प्रकाशित होने का अधिक अवसर मिला है। आरम्भ के दो कवित्त देखिये। भोग ईस, जोग ईस, जज्ञ ईस, जग ईस, |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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