हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 333

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
श्री दामोदर स्वामी

वृन्दावन में स्वामी जी के घर ठाकुर जी की सेवा उज्ज्वल प्रकार से होती थी। इस बात को देख कर अनेक लोग उन को धनी मानने लगे थे। एक दिन दो चोर रात्रि के समय उनके घर में घुसे। स्वामी जी ने उनको देख लिया किन्तु व्रजवासी समझ कर कुछ बोले नहीं। चोरों ने घर का कुल सामान इकठ्ठा करके उसको दो बड़ी गठरियों में बाँध लिया। एक गठरी को लेकर तो उनमें से एक चला गया, दूसरी को उठवाने वाला कोई नहीं रहा। स्वामी जी चोर को परेशान देखकर स्वयं उठे ओर उसे चुप चाप गठरी उठवादी। चोर अंधेरे में उनको पहिचान न पाया और यह समझा कि उसका साथी ही गठरी रखकर वापस आ गया है। बाहर निकलने पर उसका साथी उसे सामने से आता हुआ मिला और उसके अकेले गठरी उठा लाने पर आश्चर्य प्रगट करने लगा। उनकी बात चीत सुन कर स्वामी जी के पड़ौसी जाग उठे ओर उन्होंने चोरों का पीछा करके उनमें से एक को पकड़ लिया और उसे मार डाला।

गठरी स्वमी जी के घर वापस आ गई किन्तु उनको यह सुन कर अत्यन्त कष्ट हुआ कि उनके पड़ौसियों ने उनके सामान के पीछे एक व्रजवासी की हत्या कर दी है। उन्होंने गठरी का सामान बेच कर उस चोर क उत्तर-क्रिया की और साधु ब्राह्मणों को भोजन कराकर उसके नाम की जय बुल वाई! व्रजवासियों पर अपनी अद्भुत श्रद्ध को स्वामी जी ने इस दोहे में व्यक्त किया है,

सीख-सखा सब कृष्ण के व्रजवासी नर नार ।
दामोदर हित नै चलौ उत्तम यहै विचार ।।

स्वामी जी के घर इस प्रकार की चोरियाँ कई बार हुई। अन्त में उन्होंने समझ लिया कि,

संग्रह करौं न यह प्रभु इच्छा, चोर मरयौ मैं पाई सिच्छा ।
संग्रह लखि सब कोऊ आवैं, अपराध लगै व्रज-जन दुख पावैं ।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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