श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
श्री दामोदर स्वामी
वृन्दावन में स्वामी जी के घर ठाकुर जी की सेवा उज्ज्वल प्रकार से होती थी। इस बात को देख कर अनेक लोग उन को धनी मानने लगे थे। एक दिन दो चोर रात्रि के समय उनके घर में घुसे। स्वामी जी ने उनको देख लिया किन्तु व्रजवासी समझ कर कुछ बोले नहीं। चोरों ने घर का कुल सामान इकठ्ठा करके उसको दो बड़ी गठरियों में बाँध लिया। एक गठरी को लेकर तो उनमें से एक चला गया, दूसरी को उठवाने वाला कोई नहीं रहा। स्वामी जी चोर को परेशान देखकर स्वयं उठे ओर उसे चुप चाप गठरी उठवादी। चोर अंधेरे में उनको पहिचान न पाया और यह समझा कि उसका साथी ही गठरी रखकर वापस आ गया है। बाहर निकलने पर उसका साथी उसे सामने से आता हुआ मिला और उसके अकेले गठरी उठा लाने पर आश्चर्य प्रगट करने लगा। उनकी बात चीत सुन कर स्वामी जी के पड़ौसी जाग उठे ओर उन्होंने चोरों का पीछा करके उनमें से एक को पकड़ लिया और उसे मार डाला। गठरी स्वमी जी के घर वापस आ गई किन्तु उनको यह सुन कर अत्यन्त कष्ट हुआ कि उनके पड़ौसियों ने उनके सामान के पीछे एक व्रजवासी की हत्या कर दी है। उन्होंने गठरी का सामान बेच कर उस चोर क उत्तर-क्रिया की और साधु ब्राह्मणों को भोजन कराकर उसके नाम की जय बुल वाई! व्रजवासियों पर अपनी अद्भुत श्रद्ध को स्वामी जी ने इस दोहे में व्यक्त किया है, सीख-सखा सब कृष्ण के व्रजवासी नर नार । स्वामी जी के घर इस प्रकार की चोरियाँ कई बार हुई। अन्त में उन्होंने समझ लिया कि, संग्रह करौं न यह प्रभु इच्छा, चोर मरयौ मैं पाई सिच्छा । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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