हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 227

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य


श्रीहित हरिवंश द्वारा प्रचारित रस-रीति में श्रीकृष्ण भोक्ता हैं, श्रीराधा भोग्य हैं। अतः उनकी और उनके अनुयायिओं की रचनाओं में स्त्री-सौंदर्य की प्रधानता है। श्रीराधा के अद्भुत रूप-गुण के मनोरम वर्णन राधावल्लभीय साहित्य के प्रमुख आकर्षण हैं। श्रीकृष्ण के भी बड़े सुन्दर वर्णन श्रीहित जी की वाणी में मिलते हें किन्तु वे हित जी को राधापति होने के कारण प्रिय हैं। सूरदास जी का एक पद है, जो ‘देखौ माई सुन्दरता कौ सागर’ से आरंभ होता है। ‘हित चतुरासी’ में एक पद मिलता है जो ‘देखौ माई सुन्दरता की सींवा’ से प्रारंभ होता है। दोनों पद उत्तम काव्य के नमूने हैं और दोनों में रचयिताओं का स्वाभाविक पक्षपात बड़े-सुन्दर ढंग से व्यक्त हुआ है। सूरदास जी का पूरा पद हैः-

देखा माई सुन्दरता कौ सागर।
बुधि विवेक बल पार न पावत, मगन होत मन नागर।।
तन अति श्याम अगाध अंबुनिधि कटि पट पीत तरंग।
चितवत चलत अधिक रुचि उपजत भँवर परत सब अंग।।
नैन मीन मकराकृत कुंडल भुज बल सुभग भुजंग।
मुकत माल मिलि मानों सुरसरि द्वै सरिता लिये संग।।
मोर मुकुट मनि नग आभूषण कटि किंकिणि नख चंद।
मनु अडोल वारिधि में विंबित राका उडुगन वृंद।।
बदन चंद मंडल की शोभा अवलोकनि सुख देत।
जनु जल निधि मथि प्रगट कियौ ससि श्री अरु सुधा समेत।।
देखि सरूप सकल गोपीजन रहीं विचारि-विचारि।
तदपि सूर तरि सकीं न शोभा रहीं प्रेम पचि हारि।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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