साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य
श्रीहित हरिवंश द्वारा प्रचारित रस-रीति में श्रीकृष्ण भोक्ता हैं, श्रीराधा भोग्य हैं। अतः उनकी और उनके अनुयायिओं की रचनाओं में स्त्री-सौंदर्य की प्रधानता है। श्रीराधा के अद्भुत रूप-गुण के मनोरम वर्णन राधावल्लभीय साहित्य के प्रमुख आकर्षण हैं। श्रीकृष्ण के भी बड़े सुन्दर वर्णन श्रीहित जी की वाणी में मिलते हें किन्तु वे हित जी को राधापति होने के कारण प्रिय हैं। सूरदास जी का एक पद है, जो ‘देखौ माई सुन्दरता कौ सागर’ से आरंभ होता है। ‘हित चतुरासी’ में एक पद मिलता है जो ‘देखौ माई सुन्दरता की सींवा’ से प्रारंभ होता है। दोनों पद उत्तम काव्य के नमूने हैं और दोनों में रचयिताओं का स्वाभाविक पक्षपात बड़े-सुन्दर ढंग से व्यक्त हुआ है। सूरदास जी का पूरा पद हैः-
देखा माई सुन्दरता कौ सागर।
बुधि विवेक बल पार न पावत, मगन होत मन नागर।।
तन अति श्याम अगाध अंबुनिधि कटि पट पीत तरंग।
चितवत चलत अधिक रुचि उपजत भँवर परत सब अंग।।
नैन मीन मकराकृत कुंडल भुज बल सुभग भुजंग।
मुकत माल मिलि मानों सुरसरि द्वै सरिता लिये संग।।
मोर मुकुट मनि नग आभूषण कटि किंकिणि नख चंद।
मनु अडोल वारिधि में विंबित राका उडुगन वृंद।।
बदन चंद मंडल की शोभा अवलोकनि सुख देत।
जनु जल निधि मथि प्रगट कियौ ससि श्री अरु सुधा समेत।।
देखि सरूप सकल गोपीजन रहीं विचारि-विचारि।
तदपि सूर तरि सकीं न शोभा रहीं प्रेम पचि हारि।।
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