हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 205

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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सिद्धान्त
वाणी


संपूर्ण वाणी साहित्य गेय-काव्य है। रसिक संतों ने विभिन्न राग-रागनियों मे अपने पदों को बाँधा है। इन पदों के गान के द्वारा ही इन में वर्णित प्रेम का उद्रेक होता है। इसीलिये, इस सम्प्रदाय में, पद-गान को अत्यन्त महत्त्व दिया गया है। श्री हरिराम व्यास ने तो यहाँ तक कहा है, ‘मैंने ध्यान करने के लिये न तो कभी नेत्र बन्द किये और न जप करने के लिये कभी अंगन्यास ही किया। मैं तो वृन्दावन में नाच-गाकर वहाँ के रास-विलास में मिल गया हूँ।’

नैन न मूँदे ध्यान कौं किये न अंग न्यास।
नाचि गाइ रासहिं मिले बसि वृन्दावन व्यास।।

वाणियों को दो दृष्टियों से देखा जाता है। एक तो साहित्यिकों की दृष्टि है, जो इनके काव्य-सौष्ठव का आस्वाद करके उपरत हो जाती है जो अपने संपूर्ण-भाव जीवन को इन वाणियों में व्यंजित प्रीति के साँचे में ढ़ालना चाहते हैं। चाचाजी ने इन दोनों दृष्टियों को एक सुन्दर रूपक के द्वारा व्यक्त किया है। वे कहते हैं ‘श्रेष्ठतम अक्षरों की बनी हुई यह पालकी रसिकों को लेने के लिये इस लोक में आई है। जिन्होंने इसको देख कर केवल वाह-वाह की वे तो यहीं रह गये और जो उस पर चढ़ गये वे रस-धाम में पहुँच गये।’

अक्षर धुर की पालकी आई रसकिन लैन।
वाह-वाह करि रहि गये चढ़े सु पहुँचे ऐंन।।

वाणी को केवल वाह-वाह का विषय न बनने देने के लिये रसिकों ने उसको ‘नाम’ के साथ जोड़ कर रखा है। सेवा के अतिरिक्त नाम-वाणी किंवा नाम-गिरा के अनुशीलन से प्रेम साधना पूर्ण बनती है। नाम का जप वाणी पाठ के लिये हृदय में उपयुक्त भूमिका तैयार करता है और वाणीगान हृदय को स्नेह-द्रवित बनाकर उसको अविराम नाम-स्मरण की योग्यता प्रदान करता है। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और दोनों मिल कर उपासक के हृदय में प्रेम-भजन को खड़ा करते हैं।

सेवक की नाम-वाणी के युग्म को, इसीलिये, बहुत महत्त्व दिया है। उन्होंने कहा है, ‘नाम- वाणी में परम प्रीति का प्रकाश देखकर श्याम-श्यामा सदैव उनके निकट रहे आते हैं। अत्यन्त प्रेम, रस और माधुर्य का दान करने वाली नाम वाणी को सुनकर श्याम-श्यामा वशीभूत हो जाते हैं। जहाँ नाम-वाणी है। वहीं श्याम-श्यामा रहते हैं। मैं श्रीहरिवंश नाम और उनकी वाणी की बलिहार होता हूँ।’

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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