श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
सिद्धान्त
वाणी
‘जो मुख वर बानी नहिं कढ़ती। चाचा हित वृन्दावनदास ने, इसीलिये, कहा है, ‘कृपालभ्य वाणी का स्वाभाविक लक्षण यह समझना चाहिये कि उसके कथन और श्रवण से हृदय में प्रेम प्रकाशित हो जाय।’ वाणी कृपा उदोत कौ लक्षण लखौ सुभाय। वाणियों की कृपा से जिनका भजन युगल किशोर के नित्य प्रेम-विहार में अनुरक्त हो गया है, उन रसिकों की चरण रज शिर पर धारण करने का आदेश श्री ध्रुवदास ने दिया है। साथ ही उन्होंने बतलाया है कि जिनका भजन अनुराग-युक्त बन गया है और जिनके हृदय में रसमय मधुर किशोर सदैव झलमलाते रहते हैं, ऐसे रसिक जन बहुत कम मिलते हैं। अनुरागे जिनके भजन युगल-किशोर विहार। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अष्टयाम
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