हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 204

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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सिद्धान्त
वाणी


अन्यत्र, एक पद में, नागरीदास जी ने प्रेम-भजन के निर्वाह के लिये श्री हिताचार्य की वाणी की एकान्त उपादेयता का वर्णन करते हुए कहा है ‘यदि यह श्रेष्ठ वाणी हित प्रभु के मुख से न निकलती और विमल मंगल की निधि-स्वरूप उनके पद प्रकट न होते तो उपासकों के भजन पर यह अद्भुत लावण्य न चढ़ता। वृन्दावन रस रीति से युक्त प्रीति की प्रतीति भी न बढ़ने पाती। रसिक-शिरोमणि की वाणी के बिना रस-भक्ति को संसार में कहीं आश्रय न मिलता।'

‘जो मुख वर बानी नहिं कढ़ती।
प्रगटते नहीं विमल मंगल-निधि तौ भजवहि क्यौं पनिप चढ़ती।
वृन्दावन रस रीति समीती प्रीती प्रतीति कहाँ तैं बढ़ती।
रसिक सिरोमणि वस्तु बिना नागरी दास रस भक्ति दुनी सब रढ़ती।

चाचा हित वृन्दावनदास ने, इसीलिये, कहा है, ‘कृपालभ्य वाणी का स्वाभाविक लक्षण यह समझना चाहिये कि उसके कथन और श्रवण से हृदय में प्रेम प्रकाशित हो जाय।’

वाणी कृपा उदोत कौ लक्षण लखौ सुभाय।
जाके कहत-सुनत हिये प्रेम प्रकासै आय।।[1]

वाणियों की कृपा से जिनका भजन युगल किशोर के नित्य प्रेम-विहार में अनुरक्त हो गया है, उन रसिकों की चरण रज शिर पर धारण करने का आदेश श्री ध्रुवदास ने दिया है। साथ ही उन्होंने बतलाया है कि जिनका भजन अनुराग-युक्त बन गया है और जिनके हृदय में रसमय मधुर किशोर सदैव झलमलाते रहते हैं, ऐसे रसिक जन बहुत कम मिलते हैं।

अनुरागे जिनके भजन युगल-किशोर विहार।
तिन रसिकन की चरण-रज लैलै ध्रुव सिरधार।।
अनुरागे जिनके भजन तेतौ पैयत थोर।
जिनके हिय में झलमलै रसमय मधुर किशोर।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अष्टयाम

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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