हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 169

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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सिद्धान्त
उपासना-मार्ग


चित्त में प्रेम रस का स्पर्श होते ही प्रेमी के शरीर पर और उसके व्यवहार में विशेष प्रकार के लक्षण प्रगट हो जाते हैं। श्रीध्रुवदास ने बतलाया है, ‘जिसके हृदय में प्रेम-रस उत्पन्न होता है वह सदैव उदास रहता है। हँसना, खेलना और खान-पान आदि के सुख उसको विस्मृत हो जाते हैं। अद्भुत रूप-छटा देखकर उसकी बाणी थकित हो जाती है, उसके प्राण अपहृत हो जाते हैं और नेत्र रोते रह जाते हैं। हृदय में रूप की चोट लगने पर सारे अंग शिथिल हो जाते हैं, मुख पीला पड़ जाता है और शरीर का रंग बदल जाता है। जिस पर प्रेम बेलि चढ़ जाती है वह सब सुध भूल जाता है। उस के हृदय में एक मात्र चाह का कमल फूला रहता है।’

जेहि उर उपज्यौ प्रेमरस, सो नित रहत उदास।
भूल्यौ हँसिवौ, खेलिबौ, खान पान सुखवास।।
रूप छटा अद्भुत निरखि, थकित भये सुख बैन।
प्रान तहाँ पहिले गये, रोवत छांड़े नैन।।
रूप धसकि हिय धँसि गयो, शिथिल भये सब अंग।
मुख पियराई फिर गई, बदलि परयौ तन रंग।।
प्रेम बेलि जेहि पर चढ़ी, गई सबै सुधि भूलि।
एक कमल ध्रुव चाह कौ, ताके उर रहयौ फूलि।।[1]

धर्मी रसिक का रहन-सहन और लोक-व्यवहार उसके प्रेमी रूप के सर्वथा अनुकूल होता है। ‘प्रेम स्वरूप श्रीहरिवंश के नाम से भली-भाँति परिचित होने पर वह अपने को तृण से भी नीचा मानने लगता है। नाम में से निकलने वाली प्रेम की अद्भुत छटा को देखकर वह उसके आगे सदैव के लिये झुक जाता है। सदैव झुके हुए को गर्दन उठाने का अवकाश नहीं होता। वह तिनके के आगे भी झुका ही रहता है। विनत होने के कारण वह हर एक से आदर पूर्वक और हँसकर बोलता है। वह तरु के समान सहनशील होता है। उससे परिचित सब लोग उसको परम उदार कहते हैं। उसको कभी सोच स्पर्श नहीं करता और उसका मन सदैव श्रीहरिवंश के सुयश-नित्य प्रेम विहार-में समाया रहता है। वह जीवमात्र के लिये सुखदाई होता है और कभी मुख से दुखद वचन नहीं बोलता।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. प्रीति चौवनी

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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