श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
सिद्धान्त
सहचरी
रसिकों ने सखियों को युगल के प्रेम-रस कोष की अधिकारणी बतलाया है - ‘जुगल प्रेम रस-कोष हाँ की अधिकारी जु सहेली’। ध्रुवदास कहते हैं ‘जब प्रेम-रस सम्पूर्ण मर्यादाओं को तोड़कर बह चला और स्वयं श्यामाश्याम अपने तन मन की सुध भूल कर उसमें डूब गये तब वह भला कहाँ ठहरता ? वह सखियों के हृदय और नेत्रों में समा गया। सहचरीगण उसी का अवलम्ब लेकर रंग से भरी हुई युगल की सेवा में सदैव खड़ी रहती हैं। सखियों के भाव को चित्त में धारण करके जो सखियों की शरण ग्रहण करता है वही इस रस के स्वाद को पाता है। मैड़ तोरि रस चल्यौ अपारा - रही न तन मन कछु संभारा।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ रति मंजरी
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