श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
सिद्धान्त
सहचरी
राधामाधव के बीच में प्रीति का जो परमोज्जवल सागर लहरा रहा है उसमें अनंत तरंगें उठती रहती हैं, न इन तरंगों को गिना जा सकता है और न सखियों की संख्या निर्दिष्ट की जा सकती है। श्रीध्रुवदास कहते हैं कि ‘रज के कण, आकाश के तारे और घन की बूंदे गिनी जा सकतीं हैं किन्तु सखियों की संख्या जितनी बतलाई जाय यह थोडी है।’ रजकन, उडुगन, बूँदधन, आवत गिनती माहिं। इन सखियों में आठ सखियाँ ‘प्रधान हैं जिनके नाम ललिता, विशाखा, रंगदेवी, चित्रा, तुंगविद्या, चंपकलता, इन्दुलेखा और सुदेवी है। इन आठों में से प्रत्येक के साथ आठ-आठ सखियाँ रहती हैं जो स्वयं यूथेश्वरी है और जिनके यूथ में अनेकानेक सखियाँ हैं। अष्ट सखियों में ललिता सब बातों में चतुर है। इनके शरीर की प्रभा-गोरोचन के समान शुद्ध हैं और यह मोर-पिच्छ की तरह के चित्र-विचित्र वसन पहिनती हैं। यह पानों की सुन्दर बीडी बनाकर युगल को निवेदन करती रहती हैं। विशाखा सखी को वस्त्र धारण कराने की सेवा मिली हुई है। इनके तन की कांति शत-शत दामिनी जैसी है और यह तारा मंडल जैसे वस्त्र पहिन कर युगल की सेवा में लगी रहती हैं। चंपकलता युगल के लिये अनेक प्रकार के व्यंजन बनाती हैं, इनका वर्ण चंपक जैसा है और प्रिया का प्रसादी नीलांबर इनके तन की शोभा बढ़ाता रहता है। चित्रा सखी अनेक प्रकार के पेय तैयार करके युगल को पान कराती हैं। इनका वर्ण कुंकुम जैसा है और यह कनक के समान वस्त्र धारण करती हैं। तुंगविद्या गान और नृत्य में अत्यन्त प्रवीण हैं। इनका वर्ण गौर है और यह पाँडुर वर्ण के वस्त्र पहिनती हैं। इन्दुलेखा कोक-कला की सब घातों को जानती हैं और श्री राधा को अत्यन्त प्रिय हैं। इनके देह की प्रभा हरताल के समान है और अनार के फूल के वर्ण के वस्त्र यह पहिनती हैं। रंगदेवी को भूषण धारण कराने की सेवा मिली हुई है। इनके तन की आभा कमल-किंजल्क जैसी है और जपा-पुष्प के रंग की साड़ी इनको शोभा देती है। सुदेवी सखी प्रिया के केशों का श्रृंगार करती हैं, उनके नेत्रों में अंजन लगाती हैं एवं शुक-सारिका को प्रेम कहानी पढ़ाकर उनके द्वारा युगल का मनोविनोद करती हैं। यह लाल रंग की साड़ी पहिनती हैं। इन सखियों के साथ सब रागिनियाँ मूर्तिमान होकर प्रीतिपूर्वक श्याम-श्यामा के सुहाग का गान करती रहती हैं। दिवा यामिनी एवं छहौं ऋतुएँ युगल के सामने हाथ जोड़े खड़ी रहती है और जिस समय उनकी जैसी रुचि होती है उसी प्रकार यह उनको सुख देती है। इनके अतिरिक्त वृन्दावन के खग, मृग, लता, गुल्म आदि सब सहचरी-भाव धारण किये हुए युगल की सेवा में प्रवृत्त रहते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सभा मंडल
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