हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 145

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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सिद्धान्त
सहचरी

सखियों के जीवन का एक मात्र तात्‍पर्य युगल को सुख देना है। सुख देने की अभिलाषा सेवा द्वारा पूर्ण होती है। सखीगण स्‍व-सुख-वासना शून्‍य सेवा की मूर्ति है। उनकी सेवा का प्रयोजन सेवा ही है। ‘उनके मन में सेवा का अगाध चाव भरा रहता है और वे सेवा करती हुई चारों ओर ‘चकडोर’ सी घूमा करती हैं। वे युगल के श्रृंगार की नई-नई सामग्री बनाती रहती हैं और तनिक भी नहीं थकतीं। प्रेम के रंग में रँगी हुई वे युगल को अतृप्‍त भाव से सदैव निरखती रहती हैं। उनको अन्‍य सब स्‍वाद फीके लगते हैं, वे एक मात्र युगल के रूप-छत्र की छाया में रही आती हैं।’

सखी चहुँओर फिरै चकडोर-सी सेवा कौ भाव बढ़यौ मन माहीं।
सौंज सिंगार नई-नई आनत बानत नैकहुँ हारत नाहीं।।
प्रेम पगी तिहि रंग रँगी निरखैं तिनकौं तनकौं न अघाहीं।
और सबाद लगैं ध्रुव फीके, रहैं विवि रूप के छत्र की छांही।।[1]

सखागण चार भावों से युगल की सेवा करती हैं, पुत्रवत् भाव से, मित्रवत् भाव से, पतिवत् भाव से और आत्‍मवत् भाव से।

निसिदिन लाड़ लड़ावहीं अति माधुर्य सुरीति।
पुत्र, मित्र, पति, आत्‍मवत् उज्‍जवल तत्‍सुख प्रीति।।[2]

प्रतिदिन प्रात:काल युगल को जगाते समय सखियों की अद्भुत प्रीति वात्‍सल्‍य से रंजित हो जाती है। उन्‍मद प्रेम विलास का समस्‍त रात्रि उपभोग करने के बाद अरुणोदय से कुछ पूर्व राधामोहन शयन कुंज में पधारते हैं। शयन कुंज में केवल मुख्‍य सखियों को ही सेवा का अधिकार प्राप्त है। शेष सखियाँ बाहर रहकर दूसरे दिन की आवश्‍यक सेवाओं में व्‍यापृत रहती हैं और आकुलता पूर्वक दर्शनों की प्रतीक्षा करती रहती हैं। अरुणोदय होते ही वे ललिता आदि मुख्‍य सखियों से युगल को जगाने को कहती हैं- ‘जगाइ री भई बेर बड़ी’। सब मिलकर जगाने का संकल्‍प करती हैं, किन्‍तु प्रेमावेश से श्रमित नव- दंपति को किसलय-शय्या पर शयन करता देखकर उनके हृदय में वात्‍सल्‍य उमड़ आता है और वे कुछ देर के लिये उसी के आस्‍वाद में निमग्‍न हो जाती है। एक कहती है ‘हे सखी, जहाँ रूप की चहल-पहल रहती है, उस रंग-महल के किवाड़ खोलकर तू युगल को जगा दे। पहपीरी[3] हो गई है और मेरे नैन और प्राण युगल को देखे बिना व्‍याकुल हो रहे हैं। युगल के जागने पर मंद मुस्कान रूपी धन मुझे मिलेगा और उनका गुणगान करती हुई मैं सेवा में प्रवृत्त हो जाऊँगी।’

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रस मुक्तावली
  2. सु० बो० 24
  3. अरुणोदय

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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