श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
सिद्धान्त
सहचरी
प्रीतम की प्रेम-गति देखैं भूली तन-गति, सखियों की यह गति देखकर राधा-मोहन उनके पास आकर खड़े हो जाते हैं और उनकी ओर करुणा पूरित नेत्रों से देखते हैं। वे उनके हृदयों में अमृत की सी धारा सींचकर उनको बलपूर्वक प्रेम-सिन्धु के भँवर से निकालते हैं। युगल को घेरकर खड़ी हुई, महारसरंग से भरी सखियों के नेत्र तृषित चकोरों की भाँति युगल की रूप-माधुरी का पान करने लगते हैं। इस प्रेम विहार में क्षण-क्षण में जल के से सहज तरंग उठते रहते हैं और वहाँ यही खेल रात-दिन होता रहता है। सखीनु की गति हेरै, ठाड़ै भये जाइ नेरैं, |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भजन श्रृंगार, द्वितीय श्रृंखला
संबंधित लेख
विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज