श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
सिद्धान्त
सहचरी
अद्भुत गति या प्रेम की या में रीति अनेक। सखियाँ युगल की पारस्परिक रति का रूप हैं, अत: वे स्वभावत: युगल की रति से आसक्त हैं। ‘दोनों नव किशोर सहज प्रेम की सीमा हैं, सखियों का प्रेम इस प्रेम के साथ है अत: इनके सुख की सीमा नहीं है।' सहज प्रेम की सींव दोउ नवकिशोर वर जोर। सखियों का प्रेम असीम होने के साथ श्यामाश्याम के प्रेम से सरस भी अधिक है। इसका कारण यह बतलाया गया है कि ‘युगल जिस प्रीति का उपभोग करते हैं उनमें प्रेम और नेम[3] ताने-बाने की तरह बुने रहते हैं। सखियों का प्रेम इन दोनों के प्रेम के साथ है अत: उनको नेम स्पर्श नहीं करते और इस दृष्टि से उनका प्रेम युगल के प्रेम से सरस है। लाल लाड़िली प्रेम तै सरस सखिनु कौ प्रेम। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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