हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 141

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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सिद्धान्त
सहचरी

अद्भुत गति या प्रेम की या में रीति अनेक।
दुहुंतन की काहू सुनी परछाँहीं है एक?
दुहुंअन बीच सखी यह नाहीं, दुहुंतन की एक परछाहीं।
त्‍यौ दुहुं बीच सखी सुखदाई, दुहुं नैननि ज्‍यौं दीठ रहाई।
साँझ संधि ज्‍यौं निसदिन माहीं, शरद-वसंत रितुन में आहीं।
मिश्री पानी शरबत ज्‍यौं कै, संधि सहेली समुझै त्‍यौं के।।[1]

सखियाँ युगल की पारस्‍परिक रति का रूप हैं, अत: वे स्‍वभावत: युगल की रति से आसक्त हैं। ‘दोनों नव किशोर सहज प्रेम की सीमा हैं, सखियों का प्रेम इस प्रेम के साथ है अत: इनके सुख की सीमा नहीं है।'

सहज प्रेम की सींव दोउ नवकिशोर वर जोर।
प्रेम की प्रेम सखीन कै तिहि सुख कौ नहीं ओर।।[2]

सखियों का प्रेम असीम होने के साथ श्‍यामाश्‍याम के प्रेम से सरस भी अधिक है। इसका कारण यह बतलाया गया है कि ‘युगल जिस प्रीति का उपभोग करते हैं उनमें प्रेम और नेम[3] ताने-बाने की तरह बुने रहते हैं। सखियों का प्रेम इन दोनों के प्रेम के साथ है अत: उनको नेम स्‍पर्श नहीं करते और इस दृष्टि से उनका प्रेम युगल के प्रेम से सरस है।

लाल लाड़िली प्रेम तै सरस सखिनु कौ प्रेम।
अटकी हैं निजु प्रेमरस परसत तिनहिं न नेम।।[4]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. केलि-कल्‍लोल
  2. प्रेमावली
  3. काम-चेष्टायें आदि
  4. प्रेमलता

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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