सहज गीता -रामसुखदास पृ. 64

सहज गीता -स्वामी रामसुखदास

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ग्यारहवाँ अध्याय

(विश्वरुपदर्शन योग)

(भगवान् का अत्यंत भयंकर उग्ररूप देखकर अर्जुन इतने घबरा गये कि अपने ही सखा भगवान् श्रीकृष्ण से पूछने लगे-) हे देवश्रेष्ठ! आपको नमस्कार है। आप प्रसन्न होइये। मुझे यह बताइये कि उग्ररूप वाले आप कौन हैं? मैं आपको तत्त्व से जानना चाहता हूँ; क्योंकि मैं नहीं जानता कि वास्तव में आप क्या करना चाहते हैं?
श्रीभगवान् बोले- मैं संपूर्ण लोकों का नाश करने के लिए बढ़ा हुआ काल हूँ और इस समय इन सब लोगों का नाश करने के लिए यहाँ आया हूँ। तुम्हारे विपक्ष में जो योद्धा लोग खड़े हैं, वे सब तुम्हारे युद्ध किये बिना भी जीवित नहीं रहेंगे; क्योंकि ये सभी मेरे द्वारा पहले से ही मारे हुए हैं। इसलिए तुम युद्ध के लिए खड़े हो जाओ और यश को प्राप्त करो तथा शत्रुओं को जीतकर धन-धान्य से संपन्न राज्य को भोगो। हे सव्यसचिन् (दोनों हाथों से बाग चलाने वाले) अर्जुन! तुम इनको मारने में निमित्त मात्र बन जाओ अर्थात् अपनी पूरी शक्ति लगा दो, पर अभिमान मत करो। द्रोण, भीष्म, जयद्रथ, कर्ण तथा अन्य जितने विपक्ष के नामी शूरवीर हैं, वे सभी मेरे द्वारा पहले से ही मारे जा चुके हैं। उन मेरे द्वारा मारे हुए शूरवीरों को ही तुम मारो। तुम व्यथा मत करो और युद्ध करो। युद्ध में तुम निःसंदेह शत्रुओं को जीतोगे।
संजय बोले- भगवान् केशव के ये वचन सुनकर भय से काँपते हुए किरीटधारी अर्जुन हाथ जोड़कर नमस्कार करके और भयभीत होते हुए भी फिर प्रणाम करके गद्गद वाणी से भगवान् श्रीकृष्ण की स्तुति करने लगे।

अर्जुन बोले- हे अन्तर्यामी भगवान्! भक्तों के द्वारा आपके नाम, गुण आदि का कीर्तन करने से यह संपूर्ण जगत् हर्षित हो रहा है और आपमें मन तल्लीन होने से वह प्रेम को प्राप्त हो रहा है। जितने राक्षस, भूत, प्रेत, पिशाच हैं, वे सब के सब आपके नाम, गुण आदि के कीर्तन से भयभीत होकर दसों दिशाओं में भाग रहे हैं, और सिद्धों, संत महात्माओं के समुदाय आपको नमस्कार कर रहे हैं। हे महात्मन्! आप गुरुओं के भी गुरु और सृष्टिकर्ता ब्रह्मा को भी उत्पन्न करने वाले हैं, इसलिए आपको नमस्कार करना उचित ही है।

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सहज गीता -रामसुखदास
अध्याय पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. अर्जुन विषाद योग 1
2. सांख्य योग 6
3. कर्म योग 16
4. ज्ञान कर्म संन्यास योग 22
5. कर्म संन्यास योग 29
6. आत्म संयम योग 33
7. ज्ञान विज्ञान योग 40
8. अक्षर ब्रह्म योग 45
9. राज विद्याराज गुह्य योग 49
10. विभूति योग 55
11. विश्वरुपदर्शन योग 60
12. भक्ति योग 67
13. क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग 70
14. गुणत्रयविभाग योग 76
15. पुरुषोत्तम योग 80
16. दैवासुर सम्पद्विभाग योग 84
17. श्रद्धात्रय विभाग योग 89
18. मोक्ष संन्यास योग 93
गीता सार 104

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