सहज गीता -स्वामी रामसुखदास
ग्यारहवाँ अध्याय(विश्वरुपदर्शन योग)(भगवान् का अत्यंत भयंकर उग्ररूप देखकर अर्जुन इतने घबरा गये कि अपने ही सखा भगवान् श्रीकृष्ण से पूछने लगे-) हे देवश्रेष्ठ! आपको नमस्कार है। आप प्रसन्न होइये। मुझे यह बताइये कि उग्ररूप वाले आप कौन हैं? मैं आपको तत्त्व से जानना चाहता हूँ; क्योंकि मैं नहीं जानता कि वास्तव में आप क्या करना चाहते हैं? अर्जुन बोले- हे अन्तर्यामी भगवान्! भक्तों के द्वारा आपके नाम, गुण आदि का कीर्तन करने से यह संपूर्ण जगत् हर्षित हो रहा है और आपमें मन तल्लीन होने से वह प्रेम को प्राप्त हो रहा है। जितने राक्षस, भूत, प्रेत, पिशाच हैं, वे सब के सब आपके नाम, गुण आदि के कीर्तन से भयभीत होकर दसों दिशाओं में भाग रहे हैं, और सिद्धों, संत महात्माओं के समुदाय आपको नमस्कार कर रहे हैं। हे महात्मन्! आप गुरुओं के भी गुरु और सृष्टिकर्ता ब्रह्मा को भी उत्पन्न करने वाले हैं, इसलिए आपको नमस्कार करना उचित ही है। |
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