सहज गीता -रामसुखदास पृ. 45

सहज गीता -स्वामी रामसुखदास

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आठवाँ अध्याय

(अक्षर ब्रह्म योग)

भगवान् के वचनों को स्पष्ट रूप से समझने के लिए अर्जुन ने प्रश्न किया- हे पुरुषोत्तम! ‘ब्रह्म’ शब्द से क्या समझना चाहिए? ‘अध्यात्म’ शब्द से आपका क्या अभिप्राय है? ‘कर्म’ शब्द से आपका क्या भाव है? ‘अधिभूत’ का क्या तात्पर्य है? ‘अधियज्ञ’ शब्द से क्या लेना चाहिए और वह इस देह में कैसे है? हे मधुसूदन! जिनका अंतःकरण अपने वश में है, वे अंतकाल में आपको किस प्रकार से जानते हैं?
श्रीभगवान् बोले- हे देहधारियों में श्रेष्ठ अर्जुन! परम अक्षर अर्थात् निर्गुण-निराकार परमात्मा को ‘ब्रह्म’ कहते हैं। परा प्रकृति अर्थात् जीव को ‘अध्यात्म’ कहते हैं। प्राणियों को उत्पन्न करने वाला मेरा संकल्प ‘कर्म’ कहा जाता है। नाशवान् सृष्टि ‘अधिभूत’ है। हिरण्यगर्भ ब्रह्मा ‘अधिदैव’ हैं। इस मनुष्यशरीर में अंतर्यामीरूप से मैं ही ‘अधियज्ञ’ हूँ। तात्पर्य है कि जैसे एक ही जल तत्त्व परमाणु, भाप, बादल, वर्षा, ओले आदि के रूप में अलग-अलग दीखते हुए भी वास्तव में एक ही है, इसी तरह एक ही परमात्मतत्त्व ब्रह्म, अध्यात्म, कर्म, अधिभूत, अधिदैव और अधियज्ञ के रूप से अलग-अलग रूप से दीखते हुए भी वास्तव में एक ही है।
जो मनुष्य शरीर के रहते-रहते मुझे प्राप्त नहीं कर सका, वह यदि अंतकाल में भी मेरा स्मरण करते हुए शरीर छोड़ता है तो मुझे ही प्राप्त होता है, इसमें संदेह नहीं है। कारण कि हे कौन्तेय! यह नियम है कि मनुष्य अंतकाल में जिस-जिसका भी स्मरण, चिन्तन करते हुए शरीर छोड़ता है, वह उस-उस योनि में ही चला जाता है। अंतकाल के उस चिन्तन के अनुसार ही उसका मानसिक शरीर बनता है और मानसिक शरीर के अनुसार ही वह दूसरा शरीर धारण करता है। अंतकाल किसी भी समय आ सकता है; क्योंकि ऐसा कोई समय नहीं है, जिसमें अंतकाल (मौत) न आये। इसलिए यदि तुम अंतकाल में मेरा चिंतन करके मुझे प्राप्त करना चाहते हो तो सब समय में मेरा ही स्मरण करो और साथ-साथ युद्धरूप अपने कर्तव्य का पालन भी करो। मुझमें अपने मन-बुद्धि अर्पण करने से, इनके साथ अपना संबंध न मानने से सब समय मेरा ही स्मरण होगा, जिससे तुम निःसंदेह मुझे ही प्राप्त होओगे।

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सहज गीता -रामसुखदास
अध्याय पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. अर्जुन विषाद योग 1
2. सांख्य योग 6
3. कर्म योग 16
4. ज्ञान कर्म संन्यास योग 22
5. कर्म संन्यास योग 29
6. आत्म संयम योग 33
7. ज्ञान विज्ञान योग 40
8. अक्षर ब्रह्म योग 45
9. राज विद्याराज गुह्य योग 49
10. विभूति योग 55
11. विश्वरुपदर्शन योग 60
12. भक्ति योग 67
13. क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग 70
14. गुणत्रयविभाग योग 76
15. पुरुषोत्तम योग 80
16. दैवासुर सम्पद्विभाग योग 84
17. श्रद्धात्रय विभाग योग 89
18. मोक्ष संन्यास योग 93
गीता सार 104

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