सहज गीता -रामसुखदास पृ. 6

सहज गीता -स्वामी रामसुखदास

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दूसरा अध्याय

(सांख्य योग)

संजय धृतराष्ट्र से बोले- जिनके भीतर कौटुम्बिक मोह छा गया है और आँखों में आँसू भरने के कारण जिन्हें ठीक तरह से दीख भी नहीं रहा, ऐसे विषादयुक्त अर्जुन को चेताते हुए भगवान् मधुसूदन ने क्या कहा, यह आप मुझसे सुनें।
श्रीभगवान् बोले- ‘हे अर्जुन! आश्चर्य की बात है कि ऐसे युद्ध के मौके पर तुम्हारे में उत्साह के बदले यह कायरता कहाँ से आ गयी? श्रेष्ठ पुरुष में ऐसी कायरता नहीं आती, जिससे न तो स्वर्ग मिलता है, न संसार में यश ही मिलता है। युद्ध न करना धर्म की बात नहीं है, यह तो नपुसंकता (हिंजड़ापन) है। तुम्हारे- जैसे शूरवीर योद्धा में ऐसी नपुंसकता आनी सर्वथा अनुचित है। युद्ध न करना तुम्हारे हृदय की दुर्बलता, कमज़ोरी है। इसलिए हे पार्थ! उठो और हृदय की इस तुच्छ दुर्बलता का त्याग करके युद्ध के लिए खड़ा हो जाओ।’
जब भगवान् ने अर्जुन को फटकारते हुए उसे युद्ध के लिए खड़े होने की आज्ञा दी, तब अर्जुन एकाएक उत्तेजित होकर बोले- ‘हे मधुसूदन! जिनकी गोद में पला हूँ, वे पितामह भीष्म और जिनसे मैंने शिक्षा प्राप्त की है, वे आचार्य द्रोण, दोनों ही मेरे लिए पूजनीय हैं, फिर उन पर मैं बाण कैसे चलाऊँ?’ [ अर्जुन पर भगवान् की विलक्षण वाणी का असर होने लगता है और वे पुनः भगवान् से कहते हैं-] ‘मैं युद्ध करूँ अथवा न करूँ, इसका मैं निर्णय नहीं कर पा रहा हूँ। युद्ध में हमारी विजय होगी अथवा कौरवों की इसका भी हमें पता नहीं है। हम जिन्हें मारकर जीना भी नहीं चाहते, वे ही हमारे कुटुम्बी हमारे सामने खड़े हैं। एक तो कायरता रूप दोष के कारण मेरा क्षात्र-स्वभाव दब गया है और दूसरा, धर्म के विषय में मेरी बुद्धि भी काम नहीं कर रही है। इसलिए मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि जिससे मेरा निश्चित कल्याण हो जाय, ऐसी बात आप मुझसे कहिए। मैं आपका शिष्य हूँ और आपके शरण हूँ। आप मुझे शिक्षा दीजिए। कारण कि यदि मुझे धन-धान्य से संपन्न और निष्कण्टक राज्य अथवा स्वर्ग का राज्य भी मिल जाय, तो भी इन्द्रियों को सुखाने वाला मेरा शोक दूर नहीं हो सकता।’


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सहज गीता -रामसुखदास
अध्याय पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. अर्जुन विषाद योग 1
2. सांख्य योग 6
3. कर्म योग 16
4. ज्ञान कर्म संन्यास योग 22
5. कर्म संन्यास योग 29
6. आत्म संयम योग 33
7. ज्ञान विज्ञान योग 40
8. अक्षर ब्रह्म योग 45
9. राज विद्याराज गुह्य योग 49
10. विभूति योग 55
11. विश्वरुपदर्शन योग 60
12. भक्ति योग 67
13. क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग 70
14. गुणत्रयविभाग योग 76
15. पुरुषोत्तम योग 80
16. दैवासुर सम्पद्विभाग योग 84
17. श्रद्धात्रय विभाग योग 89
18. मोक्ष संन्यास योग 93
गीता सार 104

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