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सहज गीता -स्वामी रामसुखदास
गीता सारतेरहवें अध्याय का सारसंसार में एक परमात्मतत्त्व ही जानने योग्य है। उसको जाने पर अमरता की प्राप्ति हो जाती है। चौदहवें अध्याय का सारसांसार बंधन से छूटने के लिए सत्त्व, रज और तम- इन तीनों गुणों से अतीत होना जरूरी है। अनन्यभक्ति से मनुष्य इन तीनों गुणों से अतीत हो जाता है। पंद्रहवें अध्याय का सारइस संसार का मूल आधार और अत्यंत श्रेष्ठ परमपुरुष एक परमात्मा ही हैं- ऐसा मानकर अनन्यभाव से उनका भजन करना चाहिए।
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