सहज गीता -रामसुखदास पृ. 107

सहज गीता -स्वामी रामसुखदास

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गीता सार

तेरहवें अध्याय का सार

संसार में एक परमात्मतत्त्व ही जानने योग्य है। उसको जाने पर अमरता की प्राप्ति हो जाती है।

चौदहवें अध्याय का सार

सांसार बंधन से छूटने के लिए सत्त्व, रज और तम- इन तीनों गुणों से अतीत होना जरूरी है। अनन्यभक्ति से मनुष्य इन तीनों गुणों से अतीत हो जाता है।

पंद्रहवें अध्याय का सार

इस संसार का मूल आधार और अत्यंत श्रेष्ठ परमपुरुष एक परमात्मा ही हैं- ऐसा मानकर अनन्यभाव से उनका भजन करना चाहिए।


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सहज गीता -रामसुखदास
अध्याय पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. अर्जुन विषाद योग 1
2. सांख्य योग 6
3. कर्म योग 16
4. ज्ञान कर्म संन्यास योग 22
5. कर्म संन्यास योग 29
6. आत्म संयम योग 33
7. ज्ञान विज्ञान योग 40
8. अक्षर ब्रह्म योग 45
9. राज विद्याराज गुह्य योग 49
10. विभूति योग 55
11. विश्वरुपदर्शन योग 60
12. भक्ति योग 67
13. क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग 70
14. गुणत्रयविभाग योग 76
15. पुरुषोत्तम योग 80
16. दैवासुर सम्पद्विभाग योग 84
17. श्रद्धात्रय विभाग योग 89
18. मोक्ष संन्यास योग 93
गीता सार 104

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