सहज गीता -रामसुखदास पृ. 108

सहज गीता -स्वामी रामसुखदास

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गीता सार

सोलहवें अध्याय का सार

दुर्गुण-दुराचारों से ही मनुष्य चौरासी लाख योनियों एवं नरकों में जाता है और दुख पाता है। अतः जन्म-मरण के चक्र से छूटने के लिए दुर्गुण दुराचारों का त्याग करना आवश्यक है।

सत्रहवें अध्याय का सार

मनुष्य श्रद्धापूर्वक जो भी शुभ कार्य करे, उसको भगवान् का स्मरण करके, उनके नाम का उच्चारण करके ही आरंभ करना चाहिए।

अठारहवें अध्याय का सार

सब ग्रंथों का सार वेद हैं, वेदों का सार उपनिषद् हैं, उपनिषदों का सार गीता है और गीता का सार भगवान् की शरणागति है। जो अनन्यभाव से भगवान् की शरण हो जाता है, उसे भगवान् संपूर्ण पापों से मुक्त कर देते हैं।


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सहज गीता -रामसुखदास
अध्याय पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. अर्जुन विषाद योग 1
2. सांख्य योग 6
3. कर्म योग 16
4. ज्ञान कर्म संन्यास योग 22
5. कर्म संन्यास योग 29
6. आत्म संयम योग 33
7. ज्ञान विज्ञान योग 40
8. अक्षर ब्रह्म योग 45
9. राज विद्याराज गुह्य योग 49
10. विभूति योग 55
11. विश्वरुपदर्शन योग 60
12. भक्ति योग 67
13. क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग 70
14. गुणत्रयविभाग योग 76
15. पुरुषोत्तम योग 80
16. दैवासुर सम्पद्विभाग योग 84
17. श्रद्धात्रय विभाग योग 89
18. मोक्ष संन्यास योग 93
गीता सार 104

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