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सहज गीता -स्वामी रामसुखदास
गीता सारसोलहवें अध्याय का सारदुर्गुण-दुराचारों से ही मनुष्य चौरासी लाख योनियों एवं नरकों में जाता है और दुख पाता है। अतः जन्म-मरण के चक्र से छूटने के लिए दुर्गुण दुराचारों का त्याग करना आवश्यक है। सत्रहवें अध्याय का सारमनुष्य श्रद्धापूर्वक जो भी शुभ कार्य करे, उसको भगवान् का स्मरण करके, उनके नाम का उच्चारण करके ही आरंभ करना चाहिए। अठारहवें अध्याय का सारसब ग्रंथों का सार वेद हैं, वेदों का सार उपनिषद् हैं, उपनिषदों का सार गीता है और गीता का सार भगवान् की शरणागति है। जो अनन्यभाव से भगवान् की शरण हो जाता है, उसे भगवान् संपूर्ण पापों से मुक्त कर देते हैं।
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