सहज गीता -रामसुखदास पृ. 106

सहज गीता -स्वामी रामसुखदास

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गीता सार

नवें अध्याय का सार

सभी मनुष्य भगवत्प्राप्ति के अधिकारी हैं, चाहे वे किसी भी वर्ण, आश्रम, संप्रदाय, देश, वेश आदि के क्यों न हों।

दसवें अध्याय का सार

संसार में जहाँ भी विलक्षणता, विशेषता, सुंदरता, महत्ता, विद्वत्ता, बलवत्ता आदि दीखे, उसको भगवान् का ही मानकर भगवान् का ही चिन्तन करना चाहिए।

ग्यारहवें अध्याय का सार

इस जगत को भगवान् का ही स्वरूप मानकर प्रत्येक मनुष्य भगवान् के विराट् रूप के दर्शन कर सकता है।

बारहवें अध्याय का सार

जो भक्त शरीर-इन्द्रिया-मन-बुद्धिसहित अपने-आपको भगवान् के अर्पण कर देता है, वह भगवान् को प्रिय होता है।


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सहज गीता -रामसुखदास
अध्याय पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. अर्जुन विषाद योग 1
2. सांख्य योग 6
3. कर्म योग 16
4. ज्ञान कर्म संन्यास योग 22
5. कर्म संन्यास योग 29
6. आत्म संयम योग 33
7. ज्ञान विज्ञान योग 40
8. अक्षर ब्रह्म योग 45
9. राज विद्याराज गुह्य योग 49
10. विभूति योग 55
11. विश्वरुपदर्शन योग 60
12. भक्ति योग 67
13. क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग 70
14. गुणत्रयविभाग योग 76
15. पुरुषोत्तम योग 80
16. दैवासुर सम्पद्विभाग योग 84
17. श्रद्धात्रय विभाग योग 89
18. मोक्ष संन्यास योग 93
गीता सार 104

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