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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
चतुर्दश शतकम्
अहो! श्रीवृन्दावन के श्री मदनगोपाल के मुखचंद्र के सौंदर्य ने समस्त धैर्यशीलों की प्रत्येक सार वस्तु को हरण कर लिया है, तो इसके ही युगल पदों के एकांतिक दास्यभाव में इस शरीर को लगाकर अन्य कर्मत्याग-पूर्वक इस जन्म को बिताऊंगा।।102।।
जो सुन्दर पीत पट को धारण कर रहे हैं एवं स्वर्ण चम्पक की सुन्दर माला सहित दुपट्टा धारण कर रहे हैं, जो श्रीराधा की स्वर्णवत् चारु कांति से समाच्छादित हो रहे हैं स्वर्ण भूषणों से सुसज्जित मुरलीधारी श्रीमुकुन्द के श्रीवृन्दावन में दर्शन करने की मैं इच्छा करता हूँ।।103।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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