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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
नवमं शतकम्
हास्य, नृत्य तथा गान करते-करते, अतिशय पुलकित तथा अश्रुपूर्ण नेत्रों से बार-बार स्तम्भ, स्वेद आदिति मधुर भावयुक्त होकर, अपने प्रियतम श्रीराधापति का ध्यान करते हुए रसोन्मत होकर मैं कब दीर्घकाल तक श्रीवृन्दावन में वास करूँगा।।1।।
श्रीराधा-चरण-कमलों के लावण्यलीला-माधुर्य सागर में मेरा चित्त कब अतिशय मत्त होकर अवगाहन करेगा? समस्त महत् वस्तुओं को यहाँ तक कि मोक्षादि सम्पत्ति को भी तृणवत् परित्याग करके श्रीवृन्दावन में कब वास कर जीवन अतिवाहित कर सकूँगा।।2।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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