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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
षोेड़श शतकम्
श्रीराधा मुखकमल के दिव्य मधुकर, श्रीराधा के नेत्रों के अंजन, श्रीराधावक्षस्थल के दिव्य नीलवसन, श्रीराधा के मन के श्रृंखल, श्रीराधा की नाभिरूप अमृत सरोवर के नील पद्म श्रीराधा के चरणों के सुन्दर नखचन्द्रों के (श्यामता रूप) लांछन एवं श्रीराधा के ही एकमात्र क्रीड़ा मृग जो (श्रीश्यामसुन्दर) हैं। उनके इस श्रीवृन्दावन में पाने की वाञ्छा कर।।1।।
निर्ज्जन कुंजगृह में अनुनय पूर्वक श्रीराधा को क्रोड़ में लिए हुए अपनी अंगुलियों से उनकी अलकों को संवारते हुए बार-बार उसके कनक पद्म शोभायुक्त मुख को चुम्बन करते हैं, वही पुलकावलि युक्त श्रीहरि ही मेरे प्रिय हैं।।2।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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