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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
सप्तदश शतकम्
अहो! जिन्होंने अपनी कृपा से चाण्डाल पर्यन्त संकोच त्यागकर विमलतर विशुद्धा रसमयी भक्ति को दान किया है, अति उज्ज्वल स्वर्णकांति-धारी अद्भुत महिमा-युक्त अनिर्वचनीय पुरुष-प्रवर उन (श्रीकृष्ण-चैतन्यमहाप्रभु) को मैं प्रणाम करता हूँ।।1।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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