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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
चतुर्दश शतकम्
श्रीवृन्दावन में श्री मदनमोहन के मुखचन्द्र के शोभामृत को पान करने के लिए हमारी दृष्टिचकोरी बहुत लोभित हो रही है, किंतु श्रीराधा के नेत्र रूप चंचल चकोर की सुन्दर चोंच से तो वह विशेष रूप से पान हो रहा है। अतएव और किसी को प्राप्त नहीं होता।।104।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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