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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
पंचमं शतकम्
अहो! इस श्रीवृन्दावन का कोई स्थल कोटि-2 चन्दन-वनों को पराजित करने वाला है एवं किसी-किसी स्थल ने कोटि-कोटि कस्तूरी की राशियों को भी जीत लिया है तथा कोई स्थान कर्पूर के प्रवाह से उत्तम सौरभमय हो रहा है, कहीं कुकुम की पंक का लेप हो है, जो महा आनन्दकारी है। कहीं-कहीं तो अगरु को लज्जित करने वाली महा अद्भुत अपूर्व सुगन्ध छा रही है।।1।।
श्रीवृन्दावन में दिन रात अनेक प्रकार के पुष्पों की सुगन्धि इधर-उधर छा रही है। कहीं अनेक प्रकार के मकरन्द प्रवाहित हो रहे है एवं अनेक प्रकार के सुन्दर स्वादयुक्त भोज्य पदार्थ उपस्थित हैं। कहीं मधुर रसपूर्ण अनेक फलों से लदे हुए वृक्ष शोभायमान है ओैर कोइ स्थान श्रीराधामाधवस के क्रीड़ा करते समय टूटे हुए मुक्ताहारादि तथा माला- मेखलादि से परिशोभित हो रहे हैं।।2।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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