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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
चतुर्दश शतकम्
श्रीराधा के प्रति अनन्त अपराधों के कारण बाधाओं के समुद्र में पतित व्यक्ति का उद्धार नहीं होता। श्रीवृन्दावन भी उस व्यक्ति के प्रति करुणाभरी दृष्टि नहीं करता है।।100।।
अहो! बड़े लोगों (विद्वानों) को यह कैसा कठिन मोह (अज्ञान) है कि इस श्रीवृन्दावन में जो परम ज्योति (ब्रह्म) मदनगोपाल विग्रह से साक्षात् भाव से रस-सार विकीरण करता हुआ सर्वोच्च भाव से प्रकाशित हो रहा है, उसे देखकर भी वे अन्य विषयों को आग्रह पूर्वक स्थापना करते फिरते हैं।।101।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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