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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
दशमं शतकम्
श्रीवृन्दावन के निकुंजों में काम-विलास में नित्य चंचल स्वर्णइन्द्रनील-मणिवत कांतियुक्त श्रीयुगलकिशोर का उन्मत होकर कब मैं दर्शन करूँगा।।18।।
बोलते, चलते-फिरते, बैठत–सोते अथवा प्रति श्वास-श्वास काम-चंचल गौरनील-विग्रह युगलकिशोर को कब मैं अपने सन्मुख देखूंगा?।।19।।
कोटि रति-कामदेवों को मोहनकारी, मत्त-रसिक युगल-किशोर का जो स्मरण करते हैं,। उनके चरणों में चौदह भुवन लुण्ठन करते हैं।।20।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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