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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
नवमं शतकम्
नित्य-प्रकाशमान मधुर-मधुर आश्चर्य-कैशोर की शोभा द्वारास नित्य वृर्द्धनशील कामरस मद में वशीभूत अंगों युक्त श्री गांधर्वा एवं मुरलीधर सौभाग्यशील युगल विग्रह की श्रीवृन्दावन में अवलोकन, बोलिन तथा अंगचेष्टाओं का दर्शन करें।।42।।
श्रीवृन्दावन के कदम्ब कुंजों के भीतर तीब्र अनुरागवश जिनके देह-अन्तःकरण इन्द्रियादिक समस्त सम्यक् प्रकार से एकता को प्राप्त हो रहे हैं, उन नव नवायमान अति आश्चर्यमय किशोर-अवस्थायुक्त अतीव-अवथायुक्त अतीव-मोहन गौरनील छवियुक्त एवं कामरस में चंचल युगलकिशोर का में आनन्दपूर्वक भजन करता हूँ।।43।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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