विषय सूची
श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
नवमं शतकम्
कर्णिकार-कुसुम के कुण्डल धारण करने वाले तथा जिनके बिम्बाधर (गोपीगणों द्वारा) सदा चुम्बनीय हैं, जो वेणु बजा रहे हैं, सुगंध पुष्प-वेणु द्वारा जिनका श्याम शरीर अत्यन्त मनोहर शोभा दे रहा है, जिनके चूड़ा में मोर-पुच्छ शोभित है, तो उज्ज्वल तड़ित्वर्ण का पीताम्बर धारण कर रहे हैं, हे मन! उन्हीं श्रीराधा रतिलम्पट सुन्दर विग्रह (श्रीश्यामसुन्दर) का श्रीवृन्दावन में स्मरण कर।।40।।
चारों ओर महागौरकांति विस्तारकारी, प्रेमामृत रस के महा समुद्र का अति महासार-स्वरूप, श्रीवृन्दावन में अनेक कलाओं द्वारा मोहिनी (सखी) वृन्दों से सेवित, श्यामवर्ण नव युवक की चित्तचोर श्रीकिशोरी जी जय हो।।41।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज