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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
नवमं शतकम्
सर्व धर्महीन होकर भी, सब कुकर्म करते हुए भी, ‘‘राधा’’ इन दो अक्षरों का सिद्ध-मन्त्र उच्चारण करके क्या तू सिद्धि को प्राप्त नहीं कर सकता?
हे श्रीवृन्दावन! आप में वास करने के लिए इन्द्रियों के पराधीन होकर मेंने श्रेष्ठ गुरु तथा शास्त्र-वेत्ताओं से विमुख आचरण करके अत्यंत साहस का परिचय दिया है, अतः मुझे त्याग मत देना।।14।।
हे श्रीवृन्दावन! चांडाल से भी महा अधम मैंने आपके प्रति कितने कोटि कुकुर्मों का आचरण नहीं किया है? ईश्वर की भी शरण मैं ग्रहण नहीं करता, आप मेरा कुछ विधान करेंगे क्या?।।15।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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