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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
नवमं शतकम्
अप्राकृतिक नवीन युवतियों के रूप को तृणवत् तुच्छ करने वाली, एवं जिसके चरण वनभूमि में विचरण करते समय मोहिनी सखियों द्वारा शीश पर धारण किए जाते हैं, वह मेरी स्वामिनी श्रीराधा प्रकाशित हो रही हैं।।10।।
त्रिभुवन को मोहिन करने वाली महा विदग्धा एवं नवतरुणीवृन्दों की आराध्य सर्वोज्ज्वल श्रीराधाजी का श्रीवृन्दावन में स्मरण कर।।11।।
उन्मद, मधुर, एकमात्र प्रेमानन्द-मधुर प्रवाहित करने वाले श्रीराधा के चरण कमलों में विश्राम पाने वाली दासीगणों को मैं नमस्कार करता हूँ।।12।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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