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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
अष्टमं शतकम्
प्रिया प्रियतम के प्रसादी माला-वस्त्र-भूषणादि धारण करने से मनोहिनी हो रही है उसमें महाविनय एवं सुशीलतादि अनेक आश्चर्य सद्गण विराजते हैं ।।31।।
वह दासी श्रीराधा जी के नेत्र एवं वाक्यों के सब इशारों को समझने में समर्थ हैं। श्रीकृष्ण के चर्वित पानादि का वह आस्वादनस करती है एवं श्रीयुगलकिशोर उसका आदर करते हैं।।32।।
श्रीश्याम के निगूढ़ अभिसारोपयोगी श्रृंगारादि को वह धारण करती है, एवं श्रीराधा की प्रीति अनुकम्पादि से अत्यन्त प्रेम-विह्वल हो जाती है।।33।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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