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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
अष्टमं शतकम्
पत्र-पुष्पादि के स्तवक-शोभित अति सूक्ष्म वस्त्रों में वह अलकावली पर्यन्त आवृत हो रही है एवं बार बार उसे श्रीश्यामसुन्दर विशेष भाव से निरीक्षण करते हैं, अथवा वह मोहनकारी नेत्रों युक्त है।।28।।
वह लज्जायुक्त मृदु-मधुर हास्युक्त है एवं विलासपूर्ण अपांग विक्षेप-कारिणी है, नानविध आश्चर्य-कला-विशारद तथा नाना भंगीयुक्त आकृतिशील हैं।।29।
श्रीराधाकृष्ण के महाप्रेम में उसके रोमांच समूह उल्लसित होते हैं, एवं प्राणेश्वरी द्वारा शिक्षित सर्व कलाओं में वह प्रवीण है।।30।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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