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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
अष्टमं शतकम्
वह अद्भुत किशोरवस्था युक्त हैं स्तन मुकुल सुन्दर भाव से उदित हो रहे हैं, एवं तारों की हारावली तथा विचित्र कांचुलि धारण कर रही हैं।।25।।
स्निग्ध-कांति की आधार स्वरूप कदलीवत् बाहुओं में चूड़ा तथा अंगद की सुन्दर शोभा है, तथा सुमनोहर श्रेणितट पर महा वेणीलता इतस्ततः उछलने से अति उज्ज्वलता को प्राप्ति हो रही है।।26।।
उस (दासी) का मध्यदेश अत्यन्त सुन्दर है, सुकृश और मनोहर है, दिव्य रेशमी वस्त्र द्वारा कुंचित गुल्फदेश पर्यन्त सुसज्जित हो रही है।।27।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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