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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
अष्टमं शतकम्
क्षण काल के लिए चरण-सेवा त्याग करने पर वह सुन्दरी श्रीईश्वरी की प्राण हारिणी हो जाती है, अतः दिनरात वह परद कमल के सन्निकट ही रहती है।।22।।
और अधिक क्या कहा जाय? लता-गृह में अपने कांत के सहित क्रीड़ा करते समय भी श्रीराधा जी उसे शय्या पर बैठाये रखती हैं एवं कभी उसे कपड़ों से आच्छादन कर देती हैं।।23।।
वह सुगौरी सुस्निग्ध ललित स्वर्णवत् मधुर शोभायुक्ता हैं, तथा अनन्त कांतियुक्त, अनन्त शोभा सम्पत्तियुक्त एवं माधुर्यराशि युक्त हैं।।24।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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