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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
अष्टमं शतकम्
हर एक अंगुली-पल्लव में दिव्य पादांगुली चमक रही है, वह दोनों चरणों में माणिक्यमय कटक धारण कर रही हैं।।13।।
वह प्रति हाथ की प्रति अंगुली में रत्नमयी अंगूठी धारण कर रही हैं, प्रति पद-पद पर कोटि महाशोभा समुद्रों को मुग्ध कर रही हैं, एवं वह महाश्चर्य पारावार रहित केलिवैदग्धी का समुद्र हैं।।14।।
श्रीराधा जी महाश्चर्य अनंग रसमयी भंगीरूप तरंगों से सुगौर कुमार अंगों से, श्रीकृष्ण एवं सखीगणों पर्यन्त मूर्च्छित कर देती हैं।।15।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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