विषय सूची
श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
अष्टमं शतकम्
वे कांचुलि से आच्छादित है परंतु फिर भी बार-बार वस्त्रांचल से वह उन्हें आवृत करती हैं। रत्न-चूड़ावलि एवं रत्नकेयूर की शोभा इधर-उधर प्रसारित हो रही है।।7।।
श्रीराधा जी की बाहु-लताएं महा सुगोल, उज्ज्वल एवं मनोज हैं, सुस्निग्ध स्वर्णकमल के पल्लवत् उनका उदर त्रिवली से शोभित हो रहा है।।8।।
उनका अत्यन्त सुन्दर व सुकृश कटिदेश मनोहर है, नितम्ब देश महा सौन्दर्यसार से पुष्ट हो रहा है।।9।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज