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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
अष्टमं शतकम्
वह सुन्दर नासिका में स्वर्ण रक्ताभ उज्ज्वल मुक्ता धारण कर रही हैं , एवं सुन्दर रत्न-ताटंक, कर्णपूर आदि मर मन को हरण कर रही हैं।।4।।
उनके शंखवत् सुन्दर कण्ठ में नवीन कांचनमय निष्कमाला की मणि छटा वस्तिृत हो रही है, तथा मनोज्ञ-नव-कुचयुगल-स्वर्ण कलिकावत् प्रतीयमान हो रहे हैं।।5।।
वे (कुचयुगल) परमाचर्यमय सौन्दर्य एवं लावण्य से मण्डित हैं, एवं माधुर्य रस की मूर्त्ति ही है तथा वे पीन, पृथुल तथा उन्नत हैं।।6।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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