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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
व्रजविभूति श्रीश्यामदास
‘श्रीश्यामलाल हकीम’
ब्रजनिष्ठा - ग्रन्थ सम्पादन
धार्मिक एवं ब्रज निष्ठापूर्ण होने के कारण आपका व्रज-वृन्दावन से सदैव ही सम्बन्ध तो रहता ही था। विभाजन से पूर्व भी आप प्रायः अपने श्री गुरु स्थान श्रृंगार वट में आया-जाया करते थे एवं अनेक समय तक वृन्दावन में निवास कर सन्तों का संग करते हुए भजन की शिक्षा प्राप्त करते थे। वृन्दावन आने जाने से व्रजभाषा एवं संस्कृत भाषा पर आपका सम्यक् अधिकार हो गया। व्यवसाय से हकीम होने के कारण आपका अधिकार उर्दू, फारसी एवं अंग्रेजी और हिन्दी एवं व्रजभाषा आदि भाषाओं पर पहले से ही था। इसी क्रम में आपने संस्कृत एवं बंगला भाषा में प्रकाशित गौड़ीय-गोस्वामिग्रन्थों का अध्ययन किया। उस समय यह ग्रन्थ केवल बंगला लिपि में संस्कृत-बंगला भाषा में उपलब्ध थे। आपके मनस् में यह प्रेरणा हुई कि ये ग्रन्थ रत्न यदि हिन्दी में उपलब्ध और प्रकाशित होते तो हिन्दी-भाषा-भाषी साधक-भक्त भी इसका अध्ययन सुगमता से कर पाते। आपने भगवत् कृपा का सम्बल लेकर निश्चय किया कि इस कार्य को वे करेंगे और तब से ‘श्री श्याम दास’ की लेखनी का प्रवाह आरम्भ हुआ जो आज पर्यन्त नहीं रुका। आपने बंगला भाषा में उपलब्ध गोस्वामि ग्रन्थों का हिन्दी में अनुवाद और सम्पादन प्रारम्भ किया उन पर अपनी टीकाएँ भी लिखी जो श्री हरिनाम संकीर्तन मण्डल और व्रजगौरव प्रकाशन वृन्दावन द्वारा प्रकाशित होने लगे। प्रभु प्रेरणा से धीरे-धीरे छोटे-बड़े लगभग 100 ग्रन्थों का सम्पादन एवं उनके प्रकाशन की व्यवस्था हुई। यह निश्चित ही एक महत कार्य है जो श्री श्यामदास जी द्वारा लगभग 60 वर्षों से अनवरत किया जा रहा था। अधिकतर सभी ग्रन्थों के 2-3 या 4 बार तक पुनर्मुद्रण हो चुके हैं। समय के अनुसार आधुनिकतम पद्धति से मुद्रित ग्रन्थ सुरुचिपूर्ण साज-सज्जा से युक्त हैं, जिनके दर्शन मात्र से पाठक का अध्ययन की ओर सहज आकर्षण हो जाता है। बंगला भाषा: श्री चैतन्य साहित्यश्री राधा कृष्ण मिलित विग्रह महाप्रभु श्री चैतन्य का अवतार बंगाल में हुआ था। उनके अनुयायी समस्त गोस्वामि वृन्द प्रायः बंगाल प्रान्त के ही थे। इसी कारण श्री चैतन्य सम्प्रदाय का जो भी सिद्धान्त व साहित्य है- वह सभी बंगला व संस्कृत भाषा में ही है- उनकी लिपि बंगला ही है। उस बंगला साहित्य का हिन्दी में प्रस्तुतिकरण, उन पर हिन्दी टीकाओं से ही हिन्दी भाषी समाज आज उसका लाभ ले रहा है। आज भी श्री चैतन्य चरितामृत आदि ऐसे अनेक ग्रन्थ हैं जो भारत ही नहीं पूरे विश्व में हिन्दी भाषा में श्री श्यामदास जी द्वारा ही उपलब्ध कराये गये हैं। उनकी यह देन हिन्दी चैतन्स साहित्य में स्वर्णाक्षरों में अंकित करने योग्य है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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