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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
सप्तमं शतकम्
श्रीराधा जी अनन्त कोटि नव-लावण्यामृत-सिन्धु प्रवाहिनी हैं एवं प्रतिपद में महाश्चर्य सौंदर्य राशि से अशेष चराचर को मोहन करने वाली हैं।।96।।
अनेक मोहनांग से महामाधुर्यराशि रूप एवं शोभा उच्छलित हो रहे हैं। मल्लिका-चम्पक रचित मालाओं पर भ्रमर-समूह आकुलित हो रहा है।।97।।
उनकी वेणी का मूलदेश अनेक विचित्र पूष्पों द्वारा शोभित है, मध्यदेश सुन्दर भाव से ग्रथित है, एवं झूमते हुये रत्नों के गुच्छों के पश्चाद् भाव अलंकृत होकर विश्वविमोहन हो रहा है, और सिर पर अति सूक्ष्म सुन्दर ओढ़नी में से दीखती हुई पृथुजंघादेश पर्यन्त लम्बी सुन्दर वेणी-लता वे धारण कर रही हैं।।98-99।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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