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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
सप्तमं शतकम्
वह ओढ़नी सुनील, आयत, सुस्निग्ध, सुपीन, मधुर एवं उज्ज्वल है, देखने से ऐसा लगता है मानो चम्पकलता के पीछे एक नागिन लटक रही है।।100।।
स्वर्णमय अनन्त पूर्ण चन्द्रों के समान श्रीराधा जी के मुख की शोभा है, अथवा अनन्त ज्योत्सना-मण्डित स्वर्णपदम के भीतर की कांति के समान उनके मुख की शोभा।।101।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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