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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
सप्तमं शतकम्
वह प्रेमानन्द रस-विशिष्ट वापी, कूप, तड़ागादिकों द्वारा शोभित है, एवं चिन्तामणि समूहयुक्त दिव्य-दिव्य केलि-पर्वतादिकों के द्वारा सुन्दर स्वरूप से अलंकृत है।।68।।
वह दिव्य कांचनमय चित्स्वरूप रत्नस्थली द्वारा अतिशय दीप्ति प्रसार कर रहा है, नित्य पुष्प-पल्लवादि युक्त ज्योतिर्मय वृक्षलतादि से भूषित है।।69।।
वहाँ आनन्दघन-मूर्त्ति असंख्य फलवान् वृक्ष समूह क्रीड़ा-परायण उन्मत पक्षियों के कोलाहल उत्सव से मुखरित हैं।।70।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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