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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
सप्तमं शतकम्
(श्रीवृन्दावन में) इधर-उधर मदान्ध मधुकर पंक्ति मधुर झंकार कर रही है और प्रति पल्लव से, प्रति पुष्प से मधु-धारा प्रवाहित हो रही है।।71।।
यह दिशा-विदिशा में उड़ती हुई पराग से सुशोभित है, महाश्चर्य कुंज समूह रह-पुंजों के समान अति अद्भुत प्रतीत होते हैं।।72।।
श्रीवृन्दावनीय पृथ्वी पर झुण्डों के झुण्ड मोर ताण्डव नृत्य कर रहे हैं, आम्र-मुकुलों का आस्वादन कर उन्मत कोकिलाएं उदात्त पंचम स्वर कर रहीं है।।73।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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