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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
चतुर्थं शतकम्
हे कुबुद्धि मनुष्यो! देवताओं के द्वारा भी वन्दनीय इन श्रीवृन्दावन के लता, वृक्ष, गुल्मादि का भली प्रकार आनन्द प्राप्त करो-कोटि-कोटि मन्दार (स्वर्ग के पाँच प्रकार के वृक्षों में से एक वृक्ष का नाम है) वृक्षों से तुम्हें क्या लाभ होगा? ।।56।।
श्रीराधामुरलीधर के परमधन इस श्रीवृन्दावन में क्षुद्र कृति होना अच्छा है, परन्तु अन्य स्थान पर भगवत्-पार्षद-श्रेष्ठ होने का भी मैं उत्साह नहीं करता।।57।।
जो प्रबल अनुराग से श्रीवृन्दावन के गुणों को वर्णन करता है एवं सुनता है, वह श्रीहरि को ही ऋणी करता है।।58।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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