विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीरास-स्थली की शोभासुना तो होगा- सांख्ययोग में प्रकृति एक है और पुरुष अनेक हैं। एक राधा है और श्रीकृष्ण हजार-हजार रूप धारण करके उसके सामने नृत्य करके उसको प्रसन्न कर रहे हैं। आप देवीभागवत में कभी पढ़ें- श्रीराधारानी धारण करके और हार पहनकर बैठी हैं। हार भी मरकतमणिका, इन्द्रनीलमणिका; कानों में नीला कमल बड़ा ही सुन्दर! श्रीकृष्ण का नीलवर्ण है न इसलिए उनके आभूषण सब नीले हैं। और सामने क्या होता है? ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों छोटे-छोटे बच्चे हैं, एक हाथ कमर पर और एक हाथ शिर पर रखा है, और श्रीराधारानी सिखाती हैं कि नाचो बेटा- ताता-थाई ताता थेई। चार मुँह के ब्रह्मा और चार हाथ के विष्णु और तीन नेत्र के शंकर, तीनों नन्हें-नन्हें बालक के रूप में; एक गोरा, एक काला, एक लाल; राधारानी अंगुली दिखाकर कहती हैं- नाचो बेटा, नाचो बेटा, ताल से नाचो! देखो- यह स्वर बिगड़ गया, यह ताल छूट गया। ये ब्रह्मा- विष्णु महेश जो हैं उनकी छाया से पैदा हुए हैं। श्रीकृष्ण उन्हीं राधारानी को रिझाने के लिए अनेक रूप धारण करके आते हैं। वह कहती हैं- आज यह पोशाक पहनो, आज हजार बनो, आज लाख बनो, आज करोड़ बनो, आज ये नृत्य दिखाओ, आज वह नृत्य दिखाओ और श्रीराधारानी के सामने श्रीकृष्ण भगवान् नृत्य करते हैं- रेमे तत्तरलानन्दकुमुदामोदवायुना- इस श्लोक के बाद अब एक रास का वर्णन है। रास में आप जानते हैं- पदन्यासैः पाद का कैसे विन्यास करना, केवल एड़ी पड़े धरती पर, केवल पञ्जा पड़े, केवल एक अंगुली पड़े और पाँव में घुँघरू हैं तो केवल एक घुँघरू बजे, दो घुँघरू बजे, तीन घुँगरू बजे, पाँच-सात घुँघरू बजे- यह सब रास में होता है। हमने तो तलवार की धार पर और रस्सी पर भी नाचते देखा है। जैसे इस खम्भे से उस खम्भे में रस्सी बाँध दें- तो उस रस्सी पर नाचते देखा है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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