विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीरास-स्थली की शोभाउदयपुर वाली बात तो सुनी हुई है कि ऐसे ही बँधी रस्सी पर नटिनी नाचती हुई झील पार कर रही थी तो किसी ने रस्सी काट दी; बेचारी झील में गिर गयी और मर गयी। लेकिन आज भी ऐसे नट हैं, जो रस्सी पर नाचते हैं, तलवार पर नाचते हैं। पाद-विन्यास, हस्त-विन्यास, मुस्कान और भौहों का मेल। और महाराज, वह कमर-तोड़ नृत्य कि देखने वाला ही डर जाय; वक्ष के कपड़े की सम्हाल न रहे, और कुण्डल कपोलों पर जाकर के चपलता कर रहे हैं।भज्यन्मध्यैः चलकुचपटैः कुण्डलैः गण्डलौलेः ।
इसका बड़ा विलक्षण अर्थ है भला! यह काम के सामने झुकना नहीं है, काम को हराना है; यहाँ काम नहीं है, प्रेम है। उत्तम्भयन् रतिपतिं रमयाञ्चकार- आया काम, कृष्ण ने देखा कि अच्छा बेटा आ गये। कृष्ण का तो बेटा ही है काम (प्रद्मुम्न के रूप में यही आया)। कृष्ण ने कहा- नहीं, ठहर जाओ। एक महात्मा कहीं जा रहे थे। जैसे बम्बई में कभी-कभी एकाएक बादल आ जाते हैं और फटाफट बरसने लगते हैं, वैसे ही बादल आये और बरसना शुरू किया। महात्मा ने देखा। बोले- स्टाप! अरे, उसी समय बादलों का बरसना बन्द! तो रासलीला में आया काम, अभी ऊपर ही था; श्रीकृष्ण ने नीचे से कहा- स्टाप; भीतर प्रवेश नहीं बेटा तुम्हारा! हाँ, माँ-बाप के किलोल में बेटे का प्रवेश वर्जित है। विशुद्ध प्रेम में काम वर्जित है। कृष्ण बोले- काम, तुम जाओ स्वर्ग में, देवताओं में जाओ, अप्सराओं में जाओ, हमारे पास नहीं आ सकते, अब आगे की बात फिर! |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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