रासपंचाध्यायी -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 452

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रासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

रास-स्थली की शोभा

उदयपुर वाली बात तो सुनी हुई है कि ऐसे ही बँधी रस्सी पर नटिनी नाचती हुई झील पार कर रही थी तो किसी ने रस्सी काट दी; बेचारी झील में गिर गयी और मर गयी। लेकिन आज भी ऐसे नट हैं, जो रस्सी पर नाचते हैं, तलवार पर नाचते हैं।

पादन्यासैः भुजविधुतिभिः सस्मितैर्भूविलासैः ।

पाद-विन्यास, हस्त-विन्यास, मुस्कान और भौहों का मेल। और महाराज, वह कमर-तोड़ नृत्य कि देखने वाला ही डर जाय; वक्ष के कपड़े की सम्हाल न रहे, और कुण्डल कपोलों पर जाकर के चपलता कर रहे हैं।भज्यन्मध्यैः चलकुचपटैः कुण्डलैः गण्डलौलेः ।

स्विद्यन्मुख्यः कबर रशना ग्रन्थयः कृष्ण-वध्वो
गायन्त्यस्तं तडित इवता मेघचक्रे विरेजु
।।
क्या रासलीला का वर्णन है। तो अब बताते हैं,
बाहुप्रसारपरिरम्भकरालकोरु नीवीस्तनालभननर्मनखाग्रपातैः ।
क्ष्वेल्यावलोकहसित्रैर्व्रज सुन्दरीणामुत्तम्भयन् रतिपतिं रमयाञ्चकार ।।

इसका बड़ा विलक्षण अर्थ है भला! यह काम के सामने झुकना नहीं है, काम को हराना है; यहाँ काम नहीं है, प्रेम है। उत्तम्भयन् रतिपतिं रमयाञ्चकार- आया काम, कृष्ण ने देखा कि अच्छा बेटा आ गये। कृष्ण का तो बेटा ही है काम (प्रद्मुम्न के रूप में यही आया)।

कृष्ण ने कहा- नहीं, ठहर जाओ। एक महात्मा कहीं जा रहे थे। जैसे बम्बई में कभी-कभी एकाएक बादल आ जाते हैं और फटाफट बरसने लगते हैं, वैसे ही बादल आये और बरसना शुरू किया। महात्मा ने देखा। बोले- स्टाप! अरे, उसी समय बादलों का बरसना बन्द! तो रासलीला में आया काम, अभी ऊपर ही था; श्रीकृष्ण ने नीचे से कहा- स्टाप; भीतर प्रवेश नहीं बेटा तुम्हारा! हाँ, माँ-बाप के किलोल में बेटे का प्रवेश वर्जित है। विशुद्ध प्रेम में काम वर्जित है। कृष्ण बोले- काम, तुम जाओ स्वर्ग में, देवताओं में जाओ, अप्सराओं में जाओ, हमारे पास नहीं आ सकते, अब आगे की बात फिर!

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

रासपंचाध्यायी -अखण्डानन्द सरस्वती
प्रवचन संख्या विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. उपक्रम 1
2. रास की भूमिका एवं रास का संकल्प 12
3. रास के हेतु, स्वरूप और काल 28
4. रास के संकल्प में गोपी-प्रेम की हेतुता 40
5. रास की दिव्यता का ध्यान 51
6. योगमाया का आश्रय लेने का अर्थ 63
7. योगमायामुपाश्रित:-भगवान की प्रेम-परवशता 75
8. कृपायोग का आश्रय और चंद्रोदय 85
9. रास-रात्रि में पूर्ण चंद्र का दर्शन 96
10. रास में चंद्रमा का योगदान 106
11. भगवान ने वंशी बजायी 116
12. गोपियों ने वंशी-ध्वनि सुनी 127
13. श्रीकृष्ण के प्रति गोपियों का अभिसार 141
14. जो जैसिह तैसिह उठ धायीं-1 152
15. जो जैसिह तैसेहि उठ धायीं-2 163
16. जो जैसेहि तैसेहि उठि धायीं-3 175
17. जार-बुद्धि से भी भगवत्प्राप्ति सम्भव है 187
18. विकारयुक्त प्रेम से भी भगवत्प्राप्ति सम्भव है 198
19. गोपी दौड़कर गयीं कृष्ण के पास और कृष्ण ने कहा कि लौट-जाओ 209
20. श्रीकृष्ण का अमिय-गरल-वर्षण 214
21. गोपी के प्रेम की परीक्षा-धर्म का प्रलोभन 225
22. ‘लौट-जाओ’ सुनकर गोपियों की दशा का वर्णन 238
23-24. प्रेम में सूखी जा रहीं गोपियाँ आखिर बोलीं 248
(प्रणय-गीत प्रारम्भ)
25. गोपियों का समर्पण-पक्ष 261
26. श्रीकृष्ण में रति ही बुद्धिमानी है 276
27. गोपियों की न लौट पा सकने की बेबसी और मर जाने के परिणाम का उद्घाटन 286
28. गोपियों का श्रीकृष्ण को पूर्व रमण की याद दिलाना 297
29-31. गोपियों में दास्य का उदय 307
32. गोपियों में दास्य का हेतु-1 338
33. गोपियों में दास्य का हेतु-2 353
34. गोपियों में दास्य का हेतु-3 366
35-36. गोपियों की चाहत 376
(प्रणय-गीत समाप्त)
37-39. प्रथम रासक्रीड़ा का उपक्रम 393
40. रास में श्रीकृष्ण की शोभा 429
41. रास-स्थली की शोभा 441
42. रासलीला का अन्तरंग-1 453
43. रासलीला का अन्तरंग-2 467
44. रासलीला का अन्तरंग-3 480
45. रासलीला का अन्तरंग-4 494
46. अंतिम पृष्ठ 500

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