विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीरास में श्रीकृष्ण की शोभाआपको सुनाया था कि तीन पद्धतियाँ रास में हैं- एक तो है कि एक झुण्ड में एक कृष्ण और दूसरी पद्धति है कि दो गोपी के बीच में एक कृष्ण और तीसरी पद्धति है कि जितनी गोपी उतने कृष्ण-
अभी झुण्ड में है और अभी वनिताशतयूथपः उपगीयमानः, गोपियाँ जाती हुई कृष्ण से बिलकुल आकर सट जाती हैं! ‘उपमाने सान्त्येन गीयमानः उपगीयमानः’ जैसे उपनिषद् परमात्मा का गान करती हैं, तो आप जानते हैं कहाँ से गान करती हैं? वह ‘उप’ से गान करती हैं। माने स्वयं भगवान का गान नहीं करती हैं, उनके पास बैठकर गान करती हैं- उपनिषीदति है ना! षद् धातु, विशरण गति, अवसादन के अर्थ में है। तो उपनिषद् ने अविद्या का अवसादन कर दिया, भगवान को लखा दिया, दुःख का आत्यन्तिक नाश कर दिया, परंतु भगवान से एक होकर वहीं भगवान के पास बैठकर। घड़ा भी तख्ते पर और घड़े का आधार भी तख्ते पर। इसको बोलते हैं उपलक्षित। अब बच्चे ने पहचान लिया कि घड़ा जिस पर रखा था उसका नाम तख्ता और घड़ा जिस पर से हटा लिया उसका नाम तख्ता। तो उपनिषद् परब्रह्म परमात्मा की पहचान कैसे बताती है? कि उपलक्षण से बताती है। प्रपंचभावाभावोपलक्षितत्त्वं ब्रह्मत्वम्। अथवा परिच्छेदसामान्यात्यन्ताभावोपलक्षितत्त्वं ब्रह्मत्वम्। अर्थात् प्रपंच के भाव और अभाव का जो अधिष्ठान है वह ब्रह्म है। अब गोपियाँ कृष्ण का गान कैसे करती है? उपगीयमानः। उपनिषद् में पूर्वाभावोपलक्षितः अपराभावोपलक्षित, अंतराभावोपलक्षित, बाह्याभावोपलक्षित कौन है? ब्रह्म है- अपूर्वं अनपरं अनन्तरं अबाह्यम्। और यहाँ ब्रह्म है ‘उपगीयमानः’- गीयमानोपलक्षित। गोपियाँ जिसका गान कर रही हैं सो कृष्ण हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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