विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीरास में श्रीकृष्ण की शोभाश्रीकृष्ण क्या कर रहे हैं? अभी देखो कृष्ण की पहचान आती है। गोपियाँ जिसका गान करती हैं सो कृष्ण- ‘कृष्णः शरच्चंद्रकौमुदीं- कुसुमाकरं जगौ गोपी जनस्त्वेकं कृष्णनामैव केवलम।’
विष्णुपुराण में जहाँ रास का प्रसंग आया है, ऐसा प्रसंग है कि श्रीकृष्ण कहते हैं- गोपियो देखो कैसी शरद ऋतु है, शीतल-मंद-सुगन्ध वायु चल रही है और चंद्रमा की चाँदनी छिटक रही है; कैसे वृक्ष हैं, कैसी लता है, कैसी यमुना है, क्या मोर हैं, क्या चकोर हैं, क्या उत्तेजक सामग्री है। चंद्रमसं शरद कृष्णः शरच्चन्द्रमसं कौमुदीं कुसुमाकरम्, देखो, शरद् ऋतु में वसन्त आ गया। क्या फूलों का आकर्षक वन है। देखो-देखो गोपियों। और कृष्ण वन का वर्णन करते हैं। उद्गायन। कृष्ण तो सबका गान करते हैं, और गोपी क्या बोलती है कि-जगौ गोपीजनस्त्वेकं कृष्णनामैव केवलम जब कृष्ण बड़ा भारी लम्बा गाना गा लेते हैं, एक पद जब कृष्ण का पूरा होता है, तो टेक देती हैं गोपियाँ- कृष्ण, कृष्ण, कृष्ण, कृष्ण, कृष्ण, कृष्ण, कृष्ण। गोपियाँ गाती-गाती कृष्ण से चिपक गयीं, और श्रीकृष्ण गाते-गाते गोपियों के बीच में घुस गये। सबका परित्याग करके जो श्रीकृष्ण के लिए वन में आयीं, सो वनिता। वनिता माने ये लाल कपड़ा पहनने वाले संन्यासी, वनिता, परमहंस! भाई, ये लाल साड़ी कहाँ से आयी? यह लाल कपड़ा कहाँ से आया? तो कहा- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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